Kaifi Azmi Hindi Shayari: `हाथ आ कर लगा गया कोई, मेरा छप्पर उठा गया कोई`
Kaifi Azmi Hindi Shayari: उर्दू के मशहूर शायर कैफी आजमी को साल 1973 में ब्रेनहैमरेज हुआ. इसके बाद उन्होंने दूसरों के लिए जीना शुरू किया. उन्होंने अपने गांव में स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में मदद की.
Kaifi Azmi Hindi Shayari: कैफी आजमी उर्दू के बड़े शायर हैं. उनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था. उनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश से था. कैफी आजमी ने 11 साल की उम्र से ही शेर व शेयरी पढ़नी शुरू की. इस बाद जब जवानी में कदम रखा तो मुशायरे में शिरकत करने लगे. कैफी आजमी उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ के संपादक बने. कैफी आजमी की शादी शौकत से हुई. वह भी शायरा थीं. दोनों से दो बच्चे हुए. एक का नाम शबाना और दूसरे का नाम बाबा है. 10 मई 2002 को कैफी इस दुनिया को अलविदा कह गए.
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता
वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता
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इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े
इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है
इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े
साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर
मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े
मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े
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हाथ आ कर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई
लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई
मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई
ये सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई
ऐसी महँगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई
अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई
वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा ख़ुदा गया कोई
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई