कश्मीर की अनूठी रस्म, लड़की को लड़के वाले देते हैं दहेज की रक़म
साल 1990 से पहले आम रीति रिवाज़ों के साथ यहां शादियां होती थी. लेकिन इस घटना ने गांव वालों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ दी थी. उसी दिन पंचायत ने ये फैसला लिया कि आज के बाद से न कोई दहेज लेगा और न देगा.
Kashmir Wedding Rules: जहां एक तरफ लड़की की शादी को बोझ समझा जाता है. कपड़े धुलने के सामान से लेकर, बिस्तर, साज-सज्जा और रसोई तक की चीज़ों को दहेज के तौर पर दिया जाता है. इसके आलावा बारात की मेज़बानी करना, बारात का आलीशान इंतेज़ाम करना, खाना-पीना, रस्में वगैरह. हालांकि दहेज लेना और देना सख्त मना है इसके बावजूद अभी भी कई जगहों पर दहेज लिया और दिया जाता है लेकिन क्या आप जानते है अपने ही मुल्क में एक ऐसी जगह भी है जहां लड़की वालों का 1 रुपया भी ख़र्च नहीं होता है. जिसमें दहेज तो छोड़िए यहां तक की बारात का इस्तक़बाल और खाने पीने तक का इंतज़ाम भी लड़के वाले ही करते हैं.
नियम के तहत क्या करते है लड़के वाले?
ये कड़ा क़ानून कश्मीर के गांदरबल ज़िले में हरमुख की हसीन पहाड़ियों के दामन में बसे एक ख़ूबसूरत गांव बाबवाइल का है. जो कि पूरे जम्मू-कश्मीर में अपने इस नियम के चलते जाना जाता है. बता दें कि इस गांव के लिखित दस्तावेज़ के तहत शादी तय होने का बाद लड़के वालों को लड़की के घर वालों को 50 हज़ार रुपये देने होते हैं. इस रक़म में से 20 हज़ार रुपये दुल्हन की मेहर के तौर पर होते हैं. बाकी बचे 30 हज़ार रुपयों में से 20 हज़ार दुल्हन के कपड़े, जूतों वगैरह के ख़र्च के लिए होते हैं और 10 हज़ार रूपयों की रक़म को बारात में आए मेहमानों की मेज़बानी पर ख़र्चे के लिए दिए जाते हैं. अब आप सोच रहे होंगे की बारात का ख़र्चा इतनी कम रक़म में कैसे हो सकता है? आपको बता दें कि इन नियमों के साथ एक और नियम है कि बारात में 4 लागों से ज़्यादा नहीं जा सकते हैं. साथ ही बनाए गए इन नियम-क़ानून का सख़्ती से पालन करना होता है.
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इस घटना के बाद बना ये नियम
गांव के सरपंच मुहम्मद अल्ताफ अहमद शाह बताते हैं कि साल 1990 से पहले यहां ये नियम नहीं था. बाबवाइल में पहले दहेज लेना और देना आम बात थी. साल 1991 में गांव में घरेलू हिंसा का पहला मामला सामने आया था. जिसमें पति अपनी पत्नी से मायके वालों से पैसों की मांग करने को कहता है लड़कि के मान करने पर उसे बेरहमी से पिटाई कर दी थी. ये मामला अदालत तक पहुंच गया था. इस घटना से गांव का नाम बहुत ख़राब हुआ था. इस घटना ने गांव वालों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ दी थी. उसी दिन पंचायत ने ये फैसला लिया कि आज के बाद से न कोई दहेज लेगा और न देगा. अल्ताफ बताते हैं कि इसके लिए सबकी मंज़ूरी ली साथ ही लिखित दस्तावेज़ पर सभी लोगों के हस्ताक्षर लिए गए।
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