Controversy on Circumcision: केरल उच्च न्यायालय ने चिकित्सकीय निगरानी के बिना बच्चों के खतने के चलन को अवैध घोषित करने और गैर जमानती अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिका पूरी तरह से ‘‘अखबारों की रिपोर्ट’’ पर आधारित है और इसलिए यह सुनवाई योग्य नहीं है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अखबारी रिपोर्ट पर आधारित याचिका


मुख्य न्याधीश एस. मणिकुमार और न्यायमूर्ति मुरली पुरुषोत्तमन ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता, गैर सरकारी संगठन (NGO) और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए. पीठ ने कहा, ‘‘अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर तुरंत रिट याचिका दायर करना सुनवाई योग्य नहीं है. रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री पर विचार करते हुए हमारा यह भी विचार है कि याचिकाकर्ता अपना मामला साबित नहीं कर पाए हैं.’’


यह भी पढ़ें: जिस पार्टी के शासन में मुसलमानों पर हुआ जुल्म, वह आज कर दी गई भंग, मुखिया जेल में हैं बंद


खतना करने वालों पर हो कार्रवाई


पीठ ने आगे कहा कि वह कोई कानून बनाने वाली संस्था नहीं है और इसलिए एनजीओ नॉन-रिलिजियस (NRC) ने जो राहत मांगी है वह ‘‘नहीं दी जा सकती’’. एनजीओ ने अपनी याचिका में अदालत से इस प्रथा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में घोषित करने, केंद्र और केरल सरकार को इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून की आवश्यकता और तात्कालिकता के बारे में सिफारिश करने या सलाह देने या ध्यान दिलाने का आग्रह किया. जो लोग बच्चों का खतना करते हैं या ऐसा करने का प्रयास करते हैं, याचिका में उन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर अदालत से पुलिस को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.


खतने पर लगे प्रतिबंध


याचिका में अदालत से यह भी अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार को एनजीओ के अभिवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए. याचिका में इस संबंध में कानून बनाने तथा बच्चों संबंधी इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाए जाने का अनुरोध किया गया है.


क्या है खतना?


दरअसल, किसी भी शख्स के लिंग की ऊपरी त्वाचा को हटाने को खतना कहते हैं. इस्लाम में खतने को सुन्नत करा दिया गया है. माना जाता है कि इससे साफ सफाई रहती है. इससे बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है.


Zee Salaam Live TV: