`कौन सा रंग भरूँ इश्क़ के अफ़्सानों में` पढ़ें मखदूम मोहिउद्दीन के बेहतरीन शेर
Poetry of the Day: मखदूम मोहिउद्दीन (Makhdoom Mohiuddin) बिसात्-ए-रक्स (`द डांस फ़्लोर`) नामक कविताओं के संग्रह के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिसके लिए उन्हें उर्दू में 1969 साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
Poetry of the Day: मखदूम मोहिउद्दीन (Makhdoom Mohiuddin) भारत से उर्दू के एक शायर और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे. वह उर्दू के इंकलाबी शायर थे. मखदूम मोहिउद्दीन की पैदाइश 4 फ़रवरी 1908 को हैदराबाद में हुई थी. मखदूम मोहिउद्दीन हैदराबाद में प्रोग्रेसिव राइटर्स यूनियन की स्थापना की. मखदूम ने इब्तिदाई तालीम अपने गांव में हासिल की. आगे की पढ़ाई हैदराबाद शहर से की. मखदूम ने ब्रिटिश कब्जे के खिलाफ स्वतंत्र भारत के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया. मखदूम ने 1934 में सिटी कॉलेज में पढ़ाया. वह आंध्र प्रदेश में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे. वह बिसात्-ए-रक्स ("द डांस फ़्लोर") नामक कविताओं के संग्रह के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिसके लिए उन्हें उर्दू में 1969 साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. कई हिंदी फिल्मों में मखदूम की गज़लों और गीतों का इस्तेमाल किया गया है. मखदूम ने 25 अगस्त 1969 को हैदराबाद में वफात पाई.
इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे
दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे
---
दीप जलते हैं दिलों में कि चिता जलती है
अब की दीवाली में देखेंगे कि क्या होता है
---
एक झोंका तिरे पहलू का महकती हुई याद
एक लम्हा तिरी दिलदारी का क्या क्या न बना
---
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की
यह भी पढ़ें: 'इक नज़र का फ़साना है दुनिया' पढ़ें नुशूर वाहिदी के चुनिंदा शेर
---
हयात ले के चलो काएनात ले के चलो
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो
---
बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा
सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले
---
एक था शख़्स ज़माना था कि दीवाना बना
एक अफ़्साना था अफ़्साने से अफ़्साना बना
---
रात भर दर्द की शम्अ जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर
---
हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ पैकर-ए-नाज़
कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम
---
वस्ल है उन की अदा हिज्र है उन का अंदाज़
कौन सा रंग भरूँ इश्क़ के अफ़्सानों में
---
Video: