'इक नज़र का फ़साना है दुनिया' पढ़ें नुशूर वाहिदी के चुनिंदा शेर
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'इक नज़र का फ़साना है दुनिया' पढ़ें नुशूर वाहिदी के चुनिंदा शेर

 नुशूर वाहिदी (Nushoor Wahidi) ने उर्दू कविता के कई संकलन और दर्शन पर एक खंड प्रकाशित किया, जिसका नाम 'सबा-ए-हिंद' है.

 नुशूर वाहिदी (Nushoor Wahidi)

Poetry of the Day: नुशूर वाहिदी (Nushoor Wahidi) उर्दू के मशहूर शायर, लेखक और डॉक्टर थे. उनका असली नाम हफ़िज़ुर्रहमान था. वाहिदी साहब की पैदाइश उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 15 अप्रैल 1912 को हुई. नुशूर साहब ने नज्म गजल के साथ मजाहिया शायरी भी की. नुशूर ने कम उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. वह 13 साल की उम्र तक एक शायर के रूप में मशहूर हो गए थे. नुशूर साहब को शायरी वरासत में मिली. उनके पिता फारसी के जानकार और शायर थे. नुशूर वाहिदी कम उम्र में शिक्षक हुए और बाद में हलीम मुस्लिम कॉलेज कानपुर में उर्दू फारसी के लेक्टरर भी हुए. नुशूर ने उर्दू कविता के कई संकलन और दर्शन पर एक खंड प्रकाशित किया, जिसका नाम 'सबा-ए-हिंद' है. 4 जनवरी 1983 को नुशूर वाहिदी का निधन हो गया. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक पार्क का नाम उनके सम्मान में रखा गया है.

मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ 
मोहब्बत में डूबा तो कैसा सहारा 
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इक नज़र का फ़साना है दुनिया 
सौ कहानी है इक कहानी से 
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गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका 
जो बे-गुनाह था वो भी नज़र मिला न सका 
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मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ 
मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ 
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अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की 
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई 
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बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है 
ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए 
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हम ने भी निगाहों से उन्हें छू ही लिया है 
आईने का रुख़ जब वो इधर करते रहे हैं 
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ज़िंदगी क़रीब है किस क़दर जमाल से 
जब कोई सँवर गया ज़िंदगी सँवर गई 
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दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर 
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए 
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दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने 
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए 
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