Mumbai Attack 2008: बाप को है फख्र, लेकिन सदमे से नहीं उबर पाई मां; जानिए कैसे जीता है शहीद का परिवार
Mumbai Attack 2008: 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले को शनिवार को 14 साल हो जाएंगे. इस हमले में कई पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. आइए, जानते हैं इस हमले में शहीद कांस्टेबल राहुल शिंदे के घर, परिवार और गांव का हाल.
मुंबईः शनिवार को 2008 में 26/11 के मुंबई हमले की बर्सी है. इस आतंकी हमले में आम नागरिकों की मौत के साथ ही कई पुलिसकर्मी भी शहीद हो गए थे. इस हमले के शहीद के सम्मान में शुक्रवार को महाराष्ट्र में करीब 1000 लोगों की आबादी और 600 मकानों वाले सुलतानपुर गांव के लोगों ने अपने गांव का नाम बदलकर ’शहीद राहुल नगर’ कर दिया.
राज्य रिजर्व पुलिस बल के कांस्टेबल राहुल शिंदे 14 साल पहले इस आतंकवादी हमले में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. राहुल शिंदे उन पुलिसकर्मियों में शामिल थे जो आतंकवादियों की गोलीबारी की खबर मिलने के बाद आतंकियों से मोर्चां संभालने के लिए मुंबई के ताजमहल होटल में सबसे पहले पहुंचे गए थे. इस ऑपरेशन में राहुल शिंदे को आतंकियों ने गोली मार दी थी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी.
गांव वालों ने याद में बना दिया स्मारक
राहुल शिंदे सोलापुर जिले के माधा तहसील के सुलतानपुर गांव के निवासी थे. सरकार ने उनकी बहादुरी और कुर्बानी के लिए मरणोपरांत उन्हें राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित किया था. इसके बाद सुलतानपुर के निवासियों ने इस गांव का नाम बदलकर राहुल शिंदे के नाम पर रखने का फैसला किया. हालांकि सरकारी स्तर पर नाम परिवर्तन का काम अभी पूरा नहीं हुआ है. शिंदे परिवार ने 2010 में गांव में राहुल के नाम पर उसकी याद में एक स्मारक भी बनाया था. राहुल शिंदे के पिता सुभाष विष्णु शिंदे ने बताया कि गांव का नाम बदलने की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई है, लेकिन सरकारी की तरफ से अभी इसकी कार्रवाई पूरी नहीं हुई है.
सदमे से नहीं उबर पाई शहीद की मां
अपने बेटे की बहादुरी और कुर्बानी की चर्चा करते हुए सुभाष विष्णु शिंदे ने कहा कि उसने आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए साहस का परिचय दिया था और देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी. मुझे अपने बेटे पर फख्र है. सुभाष विष्णु शिंदे को एक बेटा और एक बेटी है. वह अब अपने छोटे बेटे के साथ रहते हैं जो शादीशुदा है. उन्होंने कहा, ‘‘राहुल की मां अब भी सदमे जीती है. वह अब भी हालात के मुताबिक अपने आपको ढाल नहीं पाई है, उसे अब भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि राहुल इस दुनिया में नहीं है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘राहुल की शहादत के बाद सरकार ने नियमानुसार हमारी वित्तीय सहायता की थी. हमें मुंबई में फ्लैट और तालुका में एक गैस एजेंसी भी मिली थी, जिससे परिवार का खर्चा चलता है.’’
उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर, 2008 को, पाकिस्तान से लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी समुद्री मार्ग से आकर मुंबई में 60 घंटे की घेराबंदी के दौरान 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, ओबेरॉय ट्राइडेंट, ताजमहल होटल, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल और नरीमन हाउस यहूदी समुदाय केंद्र, जिसे अब नरीमन लाइट हाउस का नाम दिया गया है, को आतंकवादियों द्वारा लक्षित कर हमले किये गए थे. बाद में सुरक्षा बलों ने देश के विशिष्ट कमांडो बल एनएसजी सहित नौ आतंकवादियों को मार गिराया था. अजमल कसाब इकलौता आतंकी था जिसे जिंदा पकड़ा गया था. चार साल बाद 21 नवंबर 2012 को उन्हें फांसी दे दी गई.
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