Manipur Violence News: मणिपुर उच्च न्यायालय ने एन बीरेन सिंह सरकार को जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में उन लोगों के लिए इंटरनेट एक्सेस की अनुमति देने का आदेश दिया है. जिनके पास लीज लाइनें और फाइबर ऑप्टिक कनेक्शन हैं.


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जानकारी के लिए बता दें कि अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग को लेकर पहाड़ी बहुल कुकी जनजाति और घाटी बहुल मैतेई लोगों के बीच हिंसा भड़कने के बाद सरकार ने 3 मई को मणिपुर में इंटरनेट बंद कर दिया था.


कई लोगों ने इंटरनेट प्रतिबंध की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया है. क्योंकि इस कदम का उद्देश्य हिंसा को रोकने के लिए फर्जी सूचनाओं के प्रसार को रोकना था. लेकिन दो महीने से अधिक समय से गोलीबारी और हत्याएं जारी हैं. उच्च न्यायालय ने कहा कि "राज्य सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या श्वेतसूचीबद्ध फोन नंबरों पर इंटरनेट कनेक्टिविटी बहाल की जा सकती है."


आपकों बता दें कि यह एक अंतरिम आदेश है. क्योंकि इंटरनेट प्रतिबंध के खिलाफ एक याचिका पर अगली सुनवाई 25 जुलाई को होगी. मणिपुर में इंटरनेट प्रतिबंध से बिल भुगतान, स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश, परीक्षा, नियमित खरीदारी और निजी फर्मों के संचालन पर असर पड़ा है. कई लोगों द्वारा दायर अनुरोधों के बाद उच्च न्यायालय ने 20 जून को राज्य अधिकारियों से कहा कि वे कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर सीमित इंटरनेट सेवाओं की अनुमति दें.


आज के आदेश में उच्च न्यायालय ने बीरेन सिंह सरकार से कहा कि वह लीज लाइनों के माध्यम से इंटरनेट पर प्रतिबंध हटा दे. जिसका उपयोग ज्यादातर सरकारी संगठनों द्वारा किया जाता है और केस आधार पर घरेलू कनेक्शन के लिए सीमित पहुंच पर विचार करें. बशर्ते कि सुरक्षा उपाय सुझाए जाएं. एक विशेषज्ञ समिति जो इंटरनेट प्रतिबंध की जांच कर रही है. उसका पालन किया जा रहा है.


उच्च न्यायालय ने कहा कि "राज्य की सुरक्षा और नागरिकों के जीवन और संपत्ति को खतरे में डाले बिना श्वेतसूची वाले मोबाइल फोन पर इंटरनेट सेवा प्रदान करने की व्यवहार्यता का पता लगाएं और 25 जुलाई को अगली सुनवाई में मामले पर रिपोर्ट मांगी."


जानकारी के बता दें कि मणिपुर सरकार के वकील ने जवाब दिया कि अधिकारी सीमित इंटरनेट पहुंच के लिए परीक्षण करेंगे और 15 दिनों के भीतर एक रिपोर्ट तैयार करेंगे. विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाए गए कुछ सुरक्षा उपायों में इंटरनेट स्पीड को 10 एमबीपीएस तक सीमित करना और यदि गृह विभाग ऐसे उपकरणों की सूची दे सकता है तो कुछ नंबरों को श्वेतसूची में डालना शामिल है.


आगे उच्च न्यायालय ने कहा कि "सेवा प्रदाताओं ने कहा है कि इंटरनेट एक्सेस की अनुमति विशेष रूप से पहचाने गए या श्वेतसूची वाले मोबाइल नंबरों तक ही सीमित होगी और किसी भी तरह के रिसाव की कोई संभावना या संभावना नहीं है."


राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि "वह श्वेतसूची में शामिल लोगों से शपथपत्र पर हस्ताक्षर करवाएगी कि उनके नेटवर्क के माध्यम से किसी दूसरे उपयोगकर्ता द्वारा किए गए अवैध कार्यों के लिए उन्हें "व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा."


आगे सरकार ने कहा कि ''प्राथमिक ग्राहक को इंटरनेट उपयोग की तारीख, समय और अवधि के विवरण सहित दूसरे उपयोगकर्ताओं का लॉग बनाए रखना अनिवार्य किया जाएगा.''


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