New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जांच के लिए तीन महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित की है.जिसे घटनाओं पर जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ राहत शिविरों की सूरत-ए-हाल की निगरानी करने और पीड़ितों के मुआवजे पर निर्णय लेने के लिए काम सौंपा गया है.


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CJI डीवाई चंद्रचूड़ ( DY Chandrachud ) और जस्टिस जेबी पारदीवाला ( Justice JB Padriwala ) और मनोज मिश्रा ( Justice Manoj Mishra ) की पीठ ने गुरुवार देर रात दिए किए अपने फैसले में इन तीन रिटायर्ड जजों की एक कमिटि गठित की , जिसमें जम्मू-कश्मीर High Court के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ( Chief Justice Of J&K ) जस्टिस गीता मित्तल ( Justice Geeta Mittal ), बॉम्बे High Court के रिटायर्ड न्यायाधीश शालिनी फणसलकर जोशी ( Shalini Fansalkar ), और Delhi High Court की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आशा मेनन ( Justice Asha Menon ) भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि ये समिति  बचे हुए लोगों या उनके परिवार के सदस्यों, स्थानीय या सामुदायिक प्रतिनिधियों, राहत शिविरों, एफआईआर या मीडिया रिपोर्टों के साथ व्यक्तिगत बैठकों सहित सभी उपलब्ध स्रोतों से जानकारी इकट्ठा करें.


पीठ ने कहा कि ऐसी समिति के गठन का मकसद न्याय प्रणाली में समुदाय के विश्वास और विश्वास को बहाल करना है और दूसरा, यह सुनिश्चित करना है कि कानून का शासन बहाल हो.


उन्होंने समिति से लैंगिक हिंसा से बचे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी कदमों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा. और यह सुनिश्चित किया कि विस्थापितों के लिए स्थापित राहत शिविरों में स्वच्छ राशन, बुनियादी चिकित्सा देखभाल, आवश्यक उत्पाद, फ्री सैनिटरी पैड, आत्महत्या की रोकथाम सेवाएं  हों. 


समिति को राहत शिविरों में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति और किसी भी जांच, लापता व्यक्तियों और शवों की बरामदगी पर अपडेट प्रदान करने के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन के प्रावधान के लिए हिदायत जारी करने का अधिकार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, "नोडल अधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने संबंधित राहत शिविरों में रहने वाले सभी लोगों का डेटाबेस बनाए रखें".


समिति को हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा और मुआवजा देने का काम सौंपा गया है. इसे सभी पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान यकीनी करने के लिए राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को निर्देश जारी करने का अधिकार दिया गया है. शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया, "जहां पीड़ित की मृत्यु हो गई है, वहां मुआवजे के भुगतान के लिए उसके रिश्तेदार की पहचान की जानी चाहिए".


गठित समिति राज्य सरकार को हिंसा से प्रभावित लोगों की चल और अचल संपत्तियों को हुए नुकसान के मुआवजे का निपटान करने के निर्देश जारी कर सकती है. यह पाक्षिक आधार पर अपनी ताजा सूरत-ए-हाल का रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपेगी.