Manipur Violence: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मणिपुर में जांच की धीमी गति पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा, "राज्य में कानून मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है." भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि जांच में कमी के कारण काफी समय बीत जाने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. यह देखते हुए कि मणिपुर में मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति ने संवैधानिक मशीनरी के कामकाज पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के डीजीपी को 7 अगस्त को दोपहर 2 बजे व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा है. 


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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जांच सुस्त चल रही है. गिरफ्तारी या ठोस नतीजों के मामले में बहुत कम या कोई तेजी नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "राज्य पुलिस इस मामले की जांच करने के काबिल नहीं है. यह भी सवाल उठाया कि 6,000 एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक केवल सात गिरफ्तारियां क्यों हुई हैं?"


मणिपुर 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा से जूझ रहा है. इस हिंसा में अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ मणिपुर हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें नग्न परेड कराने वाली दो महिलाओं द्वारा दायर याचिकाएं भी शामिल थीं.


अदालत ने कहा, "पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति के कारण कानूनी संस्था की प्रभावशीलता में जनता का विश्वास कम हो गया है. राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है. उन्होंने नियंत्रण खो दिया है. वहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं है. अगर कानून-व्यवस्था तंत्र लोगों की रक्षा नहीं कर सकता है तो नागरिकों का क्या होगा?" 


इस बीच, सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "राज्य सरकार और संबंधित अधिकारी इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील हैं और एफआईआर दर्ज की गई हैं. कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण शून्य एफआईआर में से अधिकांश का स्थानांतरण हो चुका है और कुछ स्थानांतरण की प्रक्रिया में है."


मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार को एक बयान तैयार करने का भी निर्देश दिया जिसमें वह तारीख बताई जाए जब महिलाओं ने मणिपुर में नग्न परेड की, शून्य एफआईआर दर्ज करने की तारीख बताने का निर्देश दिया है.


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