`सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है`, मोहसिन नकवी के शेर
Mohsin Naqvi Poetry: मोहसिन नकवी शिया मुस्लिम समुदाय के सक्रिय सदस्य थे. इसे उनकी कत्ल के पीछे की बड़ी वजह माना जाता है. आज हम आपके सामने पेश कर रहे हैं मोहसिन नकवी के शेर.
Mohsin Naqvi Poetry: मोहसिन नकवी उर्दू के बेहतरीन पाकिस्तानी शायर थे. वह ज्यादातर अपनी ग़ज़लों के लिए जाने जाते थे. नकवी की पैदाइश 10 मई 1947 को डेरा गाजी खान पंजाब में हुई. उनके माता-पिता ने उनका नाम गुलाम अब्बास रखा था, जिसे बाद में उन्होंने बदलकर गुलाम अब्बास मोहसिन नकवी कर दिया. मोहसिन नकवी को अहल-ए-बैत के शायर के रूप में जाना जाने लगा. कर्बला के बारे में उनकी शायरी पूरे पाकिस्तान में पढ़ी जाती है.
कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो
ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
मैं आवाज़ों के बन में घिर गया हूँ
सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है
चलेंगे हम भी मगर पैरहन रफ़ू कर के
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन'
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें
सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो
कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
गहरी ख़मोश झील के पानी को यूँ न छेड़
छींटे उड़े तो तेरी क़बा पर भी आएँगे
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
इस शान से लौटे हैं गँवा कर दिल-ओ-जाँ हम
इस तौर तो हारे हुए लश्कर नहीं आते
जो अपनी ज़ात से बाहर न आ सका अब तक
वो पत्थरों को मता-ए-हवास क्या देगा
वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया
वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी
वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है