Munawwar Rana Poetry: दोस्तों दुनिया में मां बाप का प्यार ही सबसे ज्यादा भरोसेमंद और बिना शर्त वाला होता है. कहा जाता है कि खुदा हर जगह मौजूद नहीं होता इसलिए उनने मां बाप को बनाया है. मां और बच्चे के इस अनमोल रिश्ते पर कम ही शायरों ने अपनी कलम चलाई है. इसमें से एक हैं मुनव्वर राना. आज हम आपके सामने मुनव्वर राना के लिखे हुए वो शेर पेश कर रहे हैं जो उन्होंने मां पर लिखे हैं.


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चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 


किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई 
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई 


अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा 
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है 


तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक 
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी 


मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल 
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई 


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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है 
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है 


एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश' 
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है 


ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता 
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है 


दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल 
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं


जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है 
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है 


मुझे भी उस की जुदाई सताती रहती है 
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है 


माँ ख़्वाब में आ कर ये बता जाती है हर रोज़ 
बोसीदा सी ओढ़ी हुई इस शाल में हम हैं 


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