नई दिल्लीः असम में दो मदरसों के स्टाफ पर आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में उनकी गिरफ्तारी और मदरसों को तोड़े जाने का विरोध शुरू हो गया है. असम में जहां एआईयूडीएफ शुरू से इसका विरोध कर रही है, वहीं एआईएमआईएम नेता औवेसी भी असम में मदरसा तोड़े जाने के विराध में आ गए हैं. शुक्रवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यानी एआईएमपीएलबी बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने भी असम सरकार के इस कार्रवाई की आलोचना की है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड नें मदरसा तोड़े जाने की  निंदा करने के साथ ही असम सरकार से संविधान की भावना का पालन करने की अपील की है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बिला वजह आतंकवाद का इल्जाम लगाया जा रहा 
रहमानी ने कहा कि यूपी और असम में जिस तरह से मदरसों पर शिकंजा कसा जा रहा है, वह सही नहीं है. मामूली उल्लंघन को बहाना बनाकर मदरसों को बंद किया जा रहा है या मदरसों की इमारतों को तोड़ा जा रहा है. मदरसों और मस्जिदें में काम करने वालों पर बिला वजह आतंकवाद का इल्जाम लगाया जा रहा है. बिना सबूत उनपर कार्रवाई की जा रही है. रहमानी ने कहा कि असम में मुल्क के दूसरे हिस्से से आने वाले विद्वानों पर कानूनी और प्रशासनिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, यह संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है.

प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में विरोधाभास 
रहमानी ने कहा कि अगर मदरसों को बंद करना और इमारतों को तोड़ना ही कानून के मामूली उल्लंघन के लिए एकमात्र सजा है, तो गुरुकलों, मठों, धर्मशालाओं और अन्य धार्मिक संस्थानों पर यह कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है. ऐसा लग रहा है कि सरकार संविधान को ताक पर रखकर मनमानी कार्रवाई करने पर उतारू हो गई है. रहमानी ने कहा कि प्रधानमंत्री खुद भी संसद और अन्य मंचों पर संविधान और कानून की बात करते हैं, लेकिन उनकी सरकार और विभिन्न राज्यों में उनकी पार्टी की सरकार का व्यवहार उनके बयानों से बिल्कुल विपरीत है.


ऐसी ही खबरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in