कांग्रेस की इस जिद और खुशफहमी से नहीं बनेगी कोई विपक्षी एकता; मोदी को घेरना मुश्किल
2024 के आम चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल और उनके नेता उतावले हैं, लेकिन उनके अंदर पद का लालच और खुशफहमी इस कदर भरी है कि उन सभी का एक मंच पर आना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी साबित होगा.
नई दिल्लीः कांग्रेस अपने 'भारत जोड़ो यात्रा’ से बेहद उत्साहित है, और इतना उत्साहित है कि विपक्षी एकता बनने से पहले ही बिखरती हुई नजर आ रही है. पिछले तीन दिनों में कांग्रेसी नेताओं ने जिस के उत्साह का प्रदर्शन किया है, उससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. इतवार को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि विपक्षी दलों को समझना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र विकल्प कांग्रेस है और यह नामुमकिन है कि विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में सिर्फ 200 सीट पर चुनाव लड़े. वहीं, कमलनाथ और भुपेश बघेल जैसे नेताओं ने आने वाले लोस चुनाव में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्टर करना अभी से शुरू कर दिया है. कांग्रेस के इस रणनीति से विपक्षी पार्टियां पहले ही कांग्रेस से किनारा कर लेगी.
राहुल गांधी विपक्ष के सहयोग से भाजपा को चाहते हैं हराना
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लगता है कि भारत जोड़ो यात्रा का लोगों पर काफी असर हुआ है, और इसका फायदा आने वाले चुनावों को निश्चित तौर पर कांग्रेस को मिलने वाला है. हालांकि राहुल गांधी ने कहा है कि इसके लिए विपक्षी दलों को एक साथ एक मंच पर आना होगा तभी भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. लेकिन कांग्रेस के भारत जोड़ो यात्रा में दक्षिण भारत में जहां कई विपक्षी नेताओ ने समर्थन किया है, वहीं उत्तर प्रदेश में बसपा की मायावती, सपा के अखिलेख यादव और बंगाल में ममता बनर्जी जैसी नेता कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही हैं. तेलंगाना के के चंद्रशेखर राव भी कांग्रेस को छोड़ कर बनने वाली विपक्षी एकता के समर्थन में दिख रहे हैं.
आपसी महत्वकांक्षा और अदावत है इस राह में रोड़ा
गौरतलब है कि विपक्षी एकता के सूत्रधार के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और एनसीपी के मुखिया शरद पवार उभर कर सामने आए थे. इन नेताओं ने दक्षिण से लेकर उत्तर भारत के सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की थी. हालांकि, अरविंद केजरीवाल इस खेमे में शामिल नहीं हैं, क्योंकि वह खुद को पीएम उम्मीदवार के तौर पर देख रहे हैं. ऐसा माना जा रहा था कि शरद पवार अपनी उम्र और ममता बनर्जी बांगला भाषी होने के कारण पीएम उम्मीदवार की दौर में नहीं है. ऐसे में एक मात्र और लगभग सर्वमान्य चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार बच रहे थे, जिन्हें अगले आम चुनाव में मोदी के सामने विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा सकता था. नीतीश कुमार के नाम पर ममता, अखिलेख, मायावती और राव को भी जोड़े रखना संभव था. लेकिन शनिवार को नीतीश के उस ब्यान से ये संभावना भी समाप्त होती दिख रही है, जिसमें नीतीश कुमार ने कहा कि वह खुद को पीएम कैंडिडेट नहीं मानते हैं और राहुल की उम्मीदवारी पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं है.
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