Agitation over CAA: पूर्वोत्तर के इस संगठन ने दिया सीएए वापस लेने का अल्टीमेटम; आंदोलन की धमकी
Agitation over CAA: पूर्वोत्तर राज्यों के छात्र संगठन नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने कहा है कि सीएए एक स्थानीय वासियों का विरोधी, पूर्वोत्तर विरोधी, जन विरोधी और सांप्रदायिक’ कानून है, सरकार इसे तुरंत निरस्त करें नहीं तो छात्र संगठन इसके विरोध में आंदोलन करेगा.
गुवाहाटीः नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) कानून पर एक बार फिर विरोध-पद्रर्शन का मौहाल बनता नजर आ रहा है. नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (नेसो) ने बुधवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को सांप्रदायिक और इस क्षेत्र के मूल लोगों के खिलाफ बताते हुए सरकार से इसे तत्काल रद्द करने की मांग की है. आठ राज्यों के सभी छात्र संगठनों के इस शीर्ष संस्था ने गुवाहाटी में बैठक के बाद ये फसला लिया है.
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है सुनवाई
इससे एक दिन पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री ने पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी को भरोसा दिया था कि कोविड एहतियाती खुराक का टीकाकरण पूरा हो जाने के बाद सीएए के संबंध में नियम बनाए जाएंगे. नेसो अध्यक्ष सैम्युएल बी जीरवा ने पत्रकारों से कहा, ‘’हम सीएए को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे. आसू और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के विरोध में याचिका दायर की थी जहां 2020 से कोई सुनवाई नहीं हुई है. अगर सीएए लागू किया जाता है तो हम उसका विरोध करते रहेंगे.’’
पुनर्विचार का कोई मतलब ही नहीं
नेसो सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने इस कानून को ‘स्थानीय वासियों का विरोधी, पूर्वोत्तर विरोधी, जन विरोधी और सांप्रदायिक’ करार दिया है. उन्होंने कहा हे कि सीएए को किसी भी कीमत पर जाना चाहिए. इसपर पुनर्विचार का कोई मतलब ही नहीं है. सरकार कह रही है कि इनर-लाइन-परमिट वाले राज्यों और छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों को सीएए से बाहर रखा गया है, लेकिन अगर असम और त्रिपुरा प्रभावित होंगे तो पूरा पूर्वोत्तर इलाका इस कानून से प्रभावित होगा.’’
क्या है सीएए कानून ?
सीएए के नियमों के बन जाने से उसके क्रियान्वयन का मार्ग आसान हो जाएगा. दिसंबर 2019 में संसद से पास किया गया यह कानून नियमों के अभाव में अबतक प्रभावी नहीं हो पाया है. सरकार ने अबतक नियम नहीं बनाने की वजह महामारी को बता रही है. सीएए में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर , 2014 या उससे पहले भारत आए और भारत में पांच साल रह चुके हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है.
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