'One Nation, One Election' Explained: वन नेशन वन इलेक्शन के लिए सरकार ने एक कमेटी बनाई है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे. इस नियम के बारे में बीजेपी काफी वक्त से विचार कर रही थी. अब लोगों के मन में सवाल पैदा होना शुरू हो गया है कि आखिर 'एक देश, एक चुनाव' क्या है? तो चलिए जानते हैं.


क्या है एक देश, एक चुनाव?


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केंद्र सरकार को चुनने के लिए लोकसभा चुनाव कराए जाते हैं और राज्य सरकार को चुनने के लिए विधानसभा चुनाव होते हैं. अगर सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल पार्लियामेंट में पेश करती है और यह दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास हो जाता है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे. यानी पूरे भारत में राज्यों की सरकारों और केंद्र सरकार को चुनने के लिए चुनाव एक साथ कराए जाएंगे.


वन नेशन, वन इलेक्शन के आइडिया को कुछ लोग सपोर्ट करते हैं और कुछ लोग इसकी मुखालिफत करते नजर आते हैं. बीजेपी विरोधी पार्टियां अकसर इसका विरोध करती नजर आई हैं. जानकारों की माने तो वन नेशन, वन इलेक्शन कराने के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं. तो चलिए जानते हैं.


वन नेशन, वन इलेक्शन के फायदे (One Nation, One Election Pros)


एक देश, एक चुनाव करने का सबसे पहला फायदा तो यह है कि इससे अलग-अलग चुनावों में लगने वाली पैसों की लागत में कमी आएगी. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इन पैसों में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के जरिए किया गया खर्च और चुनाव कराने के लिए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के जरिए किया गया खर्च शामिल है.


नई नीति आसानी से होगी लागू


वन नेशन वन इलेक्शन से सराकर को नीतियों को लागू करने में आसानी होगी. जब भी चुनाव होते हैं तो अचार संहिता लागू कर दी जाती है. जिसकी वजह से सरकार उस दौरान किसी भी नए प्रोजेक्ट और पब्लिक वेलफेयर पॉलिसी को लागू नहीं कर पाती है. इसके साथ ही लॉ कमीशन का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत बढ़ेगा क्योंकि वोटर्स के लिए एक बार में वोट डालना ज्यादा सुविधाजनक होगा.


वन नेशन वन इलेक्शन के नुकसान (One Nation, One Election Cons)


वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर रीजनल पार्टीज का ये डर है कि अगर ऐसा होता है तो वह स्थानीय मुद्दे नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे उनकी जगह ले लेंगे. इसके अलावा वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे.


अपोजीशन पार्टियां कर रही हैं विरोध


वन नेशन, वन इलेक्शन का अपोजीन पार्टियां विरोध कर रही हैं. एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने इस आइडिया को लेकर कहा,"वन नेशन-वन इलेक्शन भारत के संविधान के खिलाफ होगा. क्योंकि फेडरेलिज्म भारत के संविधान के स्ट्रक्चर का हिस्सा है. दूसरी बात यह कि बीजेपी के पास राज्यसभा में मैजोरिटी नहीं है, वहीं तीसरी बात यह कि बहुत सारे ऐसे राज्य हैं जो इस बात को कबूल नहीं करेंगे."


शिवसेना (UBT) ने कही ये बात


वहीं शिवसेना लीडर और एमपी संजय राउत ने वन नेशन वन इलेक्शन का तो समर्थन किया. लेकिन इसके पीछे बीजेपी की साजिश का अंदेशा जताया. उन्होंने कहा,"एक देश, एक चुनाव तो ठीक है, लेकिन निष्पक्ष चुनाव होने चाहिए.' वे (केंद्र) निष्पक्ष चुनाव की हमारी मांग को टालने के लिए इसे लेकर आए हैं."मुझे लगता है ये एक षडयंत्र है चुनाव आगे ढकेलने के लिए."