बेंगलुरुः 17 साल की प्रेग्नेंट बीवी को चेकअप के लिए अस्पताल ले जाना एक मुस्लिम शख़्स को उस वक़्त भारी पर गया जब अस्पताल के डॉक्टर ने पुलिस को बुला लिया. पुलिस ने उस शख़्स को इसलिए गिरफ्तार कर लिया कि उसने नाबालिग़ लड़की से शादी कर उसका रेप किया. इस मामले में पुलिस ने पॉक्सो क़ानून के तहत मुक़दमा दर्ज कर शौहर को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में उस शख़्स को ज़मानत दे दी गई है, लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने तब्सिरा किया है कि शादी की उम्र के मामले में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर हैं. अदालत ने इस मामले में उस दावे को ख़ारिज कर दिया कि, ‘‘मुस्लिम कानून के तहत, शादी के लिए युवावस्था को ध्यान में रखा जाता है और 15 साल की उम्र में लड़कियां बालिग़ हो जाती हैं. इसलिए बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम की धारा नौ और 10 के तहत कोई अपराध नहीं है.

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पति को मिली ज़मानत 
जस्टिस राजेंद्र बदामीकर ने अपने हालिया फैसले में कहा, ‘‘पॉक्सो कानून एक ख़ास क़ानून है और यह पर्सनल लॉ से ऊपर है. पॉक्सो क़ानून के तहत यौन गतिविधि के लिए स्वीकार्य उम्र 18 साल है.’’ अदालत ने 27 साल के एक मुस्लिम नौजवान की अर्ज़ी पर यह फैसला सुनाया है. इस शख़्स की बीवी की उम्र 17 साल है और वह प्रेग्नेंट है. जब वह जांच के लिए अस्पताल आई, तो मेडिकल ऑफिसर ने पुलिस को उसकी उम्र के बारे में बताया और शौहर के ख़िलाफ़ बाल विवाह प्रतिबंध कानून और पॉक्सो के तहत मामला दर्ज किया गया. बहरहाल, अदालत ने शौहर की ज़मानत अर्ज़ी मंज़ूर कर ली है.

रेप के मुल्ज़िम को कोर्ट ने नहीं दी रियायत  
जस्टिस बदामीकर ने ही एक दूसरे मामले में 19 साल के मुल्ज़िम शख़्स की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी है. इस मामले में मुल्ज़िम पर पॉक्सो क़ानून के साथ-साथ आईपीसी के तहत भी इल्ज़ाम लगाए गए हैं. इस मामले में मुल्ज़िम 16 साल की लड़की को मुबैयना तौर पर बहला-फुसलाकर छह अप्रैल, 2022 को अपने साथ मैसुरु ले गया, जहां उसने होटल के एक कमरे में नाबालिग़ लड़की से दो बार रेप किया. इस मामले में चिक्कमगलुरु की लोअर कोर्ट में चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है. मुल्ज़िम के वकील ने हाई कोर्ट के सामने जमानत अर्ज़ी पेश करते हुए दलील दी कि दोनों फरीक़ मुसलमान हैं, इसलिए बालिग़ होने की उम्र को ध्यान में रखा जाना चाहिए.’’ अदालत ने कहा कि पॉक्सो क़ानून और आईपीसी, पर्सनल लॉ से ऊपर हैं और ‘‘एप्लिकेंट पर्सनल लॉ की आड़ में नियमित ज़मानत के लिए अर्ज़ी नहीं दे सकता है.’’ 

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