Poetry on Complete: मुकम्मल का मतलब होता है पूरा. अक्सर कहा जाता है कि कोई भी इंसान पूरा नहीं होता. उसके साथ कुछ न कुछ कमी रह जाती है. इसी को मौजूं बना कर कई शायरों ने इस पर शेर लिखे हैं. हम यहां पेश कर रहे हैं 'मुकम्मल' शब्द पर कुछ चुनिंदा शेर.


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कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
-अहमद मुश्ताक़
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हो जाएँगे जिस रोज़ सभी काम मुकम्मल
आ जाएगा इस रूह को आराम मुकम्मल
-अल्का मिश्रा
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तेरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो
भटक रही है ख़ुशी कब से दर-ब-दर मुझ में
- नीना सहर
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चाँद सा मिस्रा अकेला है मेरे काग़ज़ पर
छत पे आ जाओ मेरा शेर मुकम्मल कर दो
-बशीर बद्र
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तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए
मुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
-वहीद अख़्तर
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वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है
मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का
-ज़ीशान साहिल
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अब्र आँखों से उठे हैं तेरा दामन मिल जाए
हुक्म हो तेरा तो बरसात मुकम्मल हो जाए
-वहीद अख़्तर
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लफ़्ज़ों की दस्तरस में मुकम्मल नहीं हूँ मैं
लिक्खी हुई किताब के बाहर भी सुन मुझे
-अहमद शनास
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सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते
-अहमद फ़राज़
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हम ने माना कि नहीं होती मुकम्मल तस्कीं
ख़त को भी आधी मुलाक़ात कहा जाता है
-ताबिश लखनवी
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
-निदा फ़ाज़ली
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कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने
फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई
-इरशाद ख़ान सिकंदर
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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
-दुष्यंत कुमार
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सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
-हुमैरा राहत
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