Poetry on December: उर्दू और हिंदी के कई बड़े शायरों ने दिसंबर को अपनी शायरी का मौजूं बनाया है. दिसंबर के महीने में हम आपके सामने लेकर आए हैं दिसंबर की शायरी.


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तू मयस्सर नहीं है, सर्दी है
और दिसम्बर की ग़ुंडा-गर्दी है
-जे ई नज्म 


रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में
जम से जाते हैं ग़म दिसम्बर में
-इंद्र सराज़ी 


'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
मल गया कालक दिसम्बर देख ले
-मुनीर सैफ़ी 


इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर
गुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले
-ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर


मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली
किसी के साथ दिसम्बर की रात काटनी है
-अज़ीज़ फ़ैसल 


सर्द ठिठुरी हुई लिपटी हुई सरसर की तरह
ज़िंदगी मुझ से मिली पिछले दिसम्बर की तरह
-मंसूर आफ़ाक़


'अल्वी' ये मोजिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
-मोहम्मद अल्वी


हर दिसम्बर इसी वहशत में गुज़ारा कि कहीं
फिर से आँखों में तिरे ख़्वाब न आने लग जाएँ
-रेहाना रूही


मुझ से पूछो कभी तकमील न होने की चुभन
मुझ पे बीते हैं कई साल दिसम्बर के बग़ैर
-मोहम्मद अली ज़ाहिर


सताती हैं रुलाती हैं मुझे यादें दिसम्बर की
जगाती हैं जलाती हैं मुझे रातें दिसम्बर की
-मुनज़्ज़ह नूर


सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा
धूप जम जाएगी आँगन में दिसम्बर आएगा
-सुल्तान अख़्तर


बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में
-जौन एलिया