Poetry on Evening: पूरे दिन भाग-दौड़ करने के बाद शामें अक्सर बोझिल और थकी हुई हो जाया करती हैं. लेकिन अगर साथ में आशिक या मशूक हो तो यह शाम रंगीन और दिलचस्प हो जाती है. शाम को मौजूं बना कई शायरों ने कलम चलाई है. शायरों ने शाम पर बेहतरीन शेर लिखे हैं. यहां हम आपके लिए पेश कर रहे हैं शाम पर कुछ चुनिंदा शेर.


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बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा 
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई 
-अजमल सिराज
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तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे 
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे 
-क़ैसर-उल जाफ़री
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वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी 
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे 
-परवीन शाकिर
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दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है 
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा 
-मज़हर इमाम
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शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं 
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं 
-वसीम बरेलवी
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शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास 
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं 
-फ़िराक़ गोरखपुरी
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अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में 
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में 
-शोएब बिन अज़ीज़
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तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद 
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो 
-इरफ़ान सिद्दीक़ी
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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए 
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए 
-बशीर बद्र
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अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ 
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या 
-मुनीर नियाज़ी
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शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है 
सोचता रोज़ हूँ मैं घर से नहीं निकलूँगा 
-शहरयार
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अब तो चुप-चाप शाम आती है 
पहले चिड़ियों के शोर होते थे 
-मोहम्मद अल्वी
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