Poetry on Moon: बचपन से ही इंसान की जिंदगी में चांद का अपना अलग मकाम रहता है. बचपन में बच्चे के लिए चांद मामा होता है तो बड़े होने पर वह महबूब हो जाता है. अरबी महीने में चांद का बहुत अहम रोल है. चांद देखकर ही अरबी महीना शुरू होता है. शायरों ने चांद की खूबसूरती और उसकी खूबी के बारे में खूब लिखा है. पेश हैं चांद पर कुछ बेहतरीन शेर.
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रात को रोज़ डूब जाता है 
चाँद को तैरना सिखाना है 
-बेदिल हैदरी
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इक दीवार पे चाँद टिका था 
मैं ये समझा तुम बैठे हो 
-बशीर बद्र
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सब सितारे दिलासा देते हैं 
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत 
-आलोक मिश्रा
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ईद का चाँद तुम ने देख लिया 
चाँद की ईद हो गई होगी 
-इदरीस आज़ाद
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चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं 
हम ने भी उस से कोई बात न की 
-महमूद अयाज़
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हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा
चांद के साथ चलोगे कब तक
-शोहरत बुख़ारी
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चाँद में तू नज़र आया था मुझे 
मैं ने महताब नहीं देखा था 
-अब्दुर्रहमान मोमिन
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इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
-परवीन शाकिर
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वो चांद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूं शाम से मैं
-फ़रहत एहसास
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा 
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा 
-इब्न-ए-इंशा
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उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा 
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा 
-इफ़्तिख़ार नसीम
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फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
-मीर तक़ी मीर
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दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला
-निदा फ़ाज़ली
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चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है 
चाँद पर चाँदनी नहीं होती 
-इब्न-ए-सफ़ी
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