Poetry on Way: किसी भी मंजिल पर पहुंचने के लिए रास्तों से गुजरना होता है. रास्ता अच्छा भी हो सकता है खराब भी हो सकता है. रास्ते आसान हों तो दूर की मंजिल भी आसान लगती है. आशिक और माशूक के लिए रास्ते हमेशा से मुश्किल भरे रहे हैं. इसी को उर्दू के कई शायरों ने अपनी शायरी का मौजूं बनाया है और इस पर अपनी कलम चलाई है. पढ़ें रास्तों पर चुनिंदा शेर.


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जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं 
वहीं तक रास्ता ठहरा हुआ है 
-अब्दुस्समद ’तपिश’
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अजब नहीं कि ये दरिया नज़र का धोका हो 
अजब नहीं कि कोई रास्ता निकल आए 
-इरफ़ान सिद्दीक़ी
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तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र 
रास्तों के जाल में उलझा हूँ मैं 
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
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कोई रस्ता कहीं जाए तो जानें 
बदलने के लिए रस्ते बहुत हैं 
-महबूब ख़िज़ां
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जो रुकावट थी हमारी राह की 
रास्ता निकला उसी दीवार से 
-अज़हर अब्बास


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मैं ख़ुद ही अपने तआक़ुब में फिर रहा हूँ अभी 


उठा के तू मेरी राहों से रास्ता ले जा 
-लुत्फ़ुर्रहमान
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दिलचस्प हो गई तिरे चलने से रहगुज़र 
उठ उठ के गर्द-ए-राह लिपटती है राह से 
-जलील मानिकपूरी
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हम आप को देखते थे पहले 
अब आप की राह देखते हैं 
-कैफ़ी हैदराबादी
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कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक 
मिला है घाव ये दरिया को रास्ता दे कर 
-अदीम हाशमी
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यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता 
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो 
-निदा फ़ाज़ली
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वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ 
सो अब फिर इक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा 
-इफ़्तिख़ार आरिफ़
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सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है 
अब आसमान तलक रास्ता बनाना है 
-शहबाज़ ख़्वाजा
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क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो 
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो 
-आदिल मंसूरी
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