Poetry on the Day: उर्दू के कई मशहूर शायरों ने नाराज़गी को अपनी शायरी का मौजूं बनाया है और उस पर बेहतरीन शेर लिखे हैं. आज पेश हैं नाराज़गी पर चुनिंदा शेर.
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Poetry on the Day: नाराज़गी मोहब्बत का दूसरा पहलू है. अगर किसी से प्यार होता है तो उससे नाराज़गी भी होती है. जिस मोहब्बत में नाराज़गी न हो वो मोहब्बत पूरी नहीं मानी जाती. मोहब्बत में रूठना मनाना लगा रहता है. रूठने मनाने से प्यार भी बढ़ता है. कई बार आशिक माशूक एक दूसरे से इसलिए भी रूठ जाया करते हैं ताकि वह एक दूसरे को मनाएं.
जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला
उसे भी क्या मिला नाराज़गी से
-नवनीत शर्मा
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तब्दीलियाँ हैं उम्र के जाने के साथ साथ
नाराज़गी बढ़ी है मनाने के साथ साथ
-सफ़दर हमदानी
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तेरी नाराज़गी क़ुबूल मगर
ये भी क्या भूल कर भी बात न हो
-आनंद नारायण मुल्ला
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मैं ने तो उन की शान में कुछ भी नहीं कहा
नाराज़गी का उन की कोई भी सबब नहीं
-नाज़िम जाफ़री
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ख़फ़ा मुझ से जो मेरी ज़िंदगी है
अजल को भी है कम नाराज़गी क्या
-ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
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मेरी नाराज़गी ठहर न सकी
हाथ में ले के वो गुलाब आए
-शमा ज़फर मेहदी
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तुझे क्या ख़बर तेरी नाराज़गी ने
रज़ा-मंदी को कैसे कैसे छुआ है
-कामरान हामिद
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इतनी नाराज़गी अरे तौबा
वो भी बीमार से ख़ुदा-हाफ़िज़
-माह तलअत ज़ाहिदी
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ज़रा सी बात पे नाराज़गी अगर है यही
तो फिर निभेगी कहाँ दोस्ती अगर है यही
-मुर्तज़ा बरलास
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तिरी नाराज़गी भी ख़त्म करनी है अभी तो
तमाशा साध कर जोकर बनेंगे जो भी होगा
-अज़ीम कामिल
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नाराज़गी न हो तो मोहब्बत है बे-मज़ा
हस्ती ख़ुशी भी ग़म भी है नफ़रत भी प्यार भी
-जामी रुदौलवी
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बहुत नाराज़ है वो और उसे हम से शिकायत है
कि इस नाराज़गी की भी शिकायत क्यूँ नहीं करते
-फ़रहत एहसास
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जानता हूँ उस की हर नाराज़गी को मैं मगर
अपने हिस्से का भी तो कोई गिला रखता हूँ मैं
-गुरबीर छाबरा
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