Rahat Indori Poetry: `ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो`, राहत इंदौरी के मशहूर शेर
Rahat Indori Poetry: राहत इंदौरी (Rahat Indori) की यौमे पैदाईश 1 जनवरी 1950 को हुई थी. उनका बचपन का नाम कामिल था जो बाद में राहतउल्ला कुरैशी हुआ लेकिन दुनिया में पहचान डॉ. राहत इंदौरी के नाम मिली. उनके वालिद का नाम रफ्तुल्लाह कुरैशी था जो एक कपड़ा मिल में काम करते थे और उनकी मां का नाम मकबूल-उन-निसा बेगम था.
Rahat Indori Poetry: राहत इंदौरी (Rahat Indori) साहब उर्दू के मशहूर शायर थे. राहत इंदौरी अपने बेबाक अदांज़ और बेहतरीन शायरी के लिए पूरी दुनिया जाने जाते रहे हैं. वो हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी अदबी दुनिया के लिए एक मिसाल रहे हैं. राहत इंदौरी कोशिश किया करते कि उनकी शायरी को हर कोई समझ सके, इसके लिए वो बेहद आसान लफ्ज़ों का इस्तेमाल करते थे. यही वजह है कि उनकी गज़लें नौजवानों ही नहीं बूढ़े, बच्चों की ज़बानों पर भी रवां रहती हैं.
दो गज़ सही मगर यह मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया
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हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
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मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे
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शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
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बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
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वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
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मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
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लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
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हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
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सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.
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