Jan Nisar Akhtar Poetry: 'सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी', पढ़ें जां निसार अख्तर के शेर
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Jan Nisar Akhtar Poetry: 'सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी', पढ़ें जां निसार अख्तर के शेर

Jan Nisar Akhtar Poetry: जाँ निसार अख्तर 08 फरवरी 1914 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में पैदा हुए थे. उन्होंने उर्दू में शेर लिखने के साथ हिंदी सिनेमा में अपना बड़ा योगदान दिया. जाँ निसार अख्तर 8 अगस्त 1976 को मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह गए. 

Jan Nisar Akhtar Poetry: 'सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी', पढ़ें जां निसार अख्तर के शेर

Jan Nisar Akhtar Poetry: जां निसार अख्तर मशहूर शायर और नग्मानिगार थे. जां निसार अख्तर ऐसे शायर थे जिन्होंने हमेशा याद की जाने वाली गज़ले और फिल्मी गाने लिखें हैं. यही वजह है कि उनकी गज़लों और गीत को आज भी लोग अपने ज़हन और दिल में ताज़ा रखते हैं. उन्होंने अपनी शायरी में महबूब से बातों के अलावा अपनी ज़िंदगी की कुछ आप-बती को बयान किया है. तो आइए आज उनके यौमे पैदाइश के मौके पर हम आपको उनके शेरों से रूबरू कराते हैं. 

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें 
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं 
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और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ 
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह 
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से 
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से 
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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी 
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से

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ज़ुल्फ़ें सीना नाफ़ कमर
एक नदी में कितने भँवर
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आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है
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आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम
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हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए
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शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो तुझे
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बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है
कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ
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मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझ को
वो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था
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