नई दिल्ली: रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) भाई-बहन के रिश्तों का एक पवित्र त्योहार है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी (Rakhi) बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र के लिए दुआ करती हैं. साथ ही भाई भी अपनी बहन रक्षा करने का वचल लेता है. इसी त्योहार से जुड़ी एक कहानी बहुत मशहूर है. यह कहानी है हुमायूं (Humayun) और रानी कर्णावती (Rani Karnavati) की. बताया जाता है कि रानी कर्णावती ने हुमायूं (Humayun And Karnavati) को राखी भेजकर मदद की गुहार लगाई थी. जिसके बाद हुमायूं ने रानी कर्णावती की मदद करने का फैसला लिया था.  


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दरअसल राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा की विधवा रानी कर्णवती ने उस वक्त हुमायूं को राखी भेजी थी जब गुजरात (Gujrat) के बादशाह बहादुर शाह (Bahadur Shah) ने चितौड़ (Chittaur) पर हमला कर दिया था. उस वक्त चितौड़ की गद्दी पर रानी कर्णावती का बेटा था और उनके पास इतनी फौजी ताकत भी नहीं थी कि वो अपनी रियासत और जनता की हिफाज़त कर सकें. जिसके बाद रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी और मदद की अपील की. हुमायूं ने एक मुस्लिम होने के बावजूद उस राखी को कुबूल किया और रानी कर्णावती की मदद करने का अज्म भी लिया.


हुमायूं चितौड़ की हिफाज़त करने के लिए अपनी फौज लेकर निकल पड़ा और कई सौ किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद चितौड़ पहुंचा लेकिन जब तक हुमायूं चितौड़ पहुंचा था तब तक काफी देर हो चुकी थी और रानी कर्णावती ने जौहर (खुद को आग में जला लेना) कर लिया था. जिसके बाद चितौड़ पर बहादुर शाह ने कब्ज़ा कर लिया था. यह खबर सुनने के बाद हुमायूं को गुस्सा आ गया और चितौड़ पर हमला बोल दिया. 


हुमायूं और बहादुर शाह के दरमियान हुई इस जंग में हुमायूं ने बहादुर शाह को शिकस्त दी और हुमायूं ने एक बार फिर रानी कर्णावती के बेटे को उनकी गद्दी वापस दिलाई. तभी से यह कहानी तारीख में दर्ज हो गई और हिंदू-मुस्लिम एकता की कई बड़ी मिसलों में से एक मिसाल यह भी दी जाती है. धर्म की दीवार से ऊपर उठकर बने इस भाई-बहन के रिश्ते को खास तौर पर रक्षाबंधन त्योहार अक्सर याद किया जाता है.


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