नई दिल्लीः एक जेलर को पिस्तौल तानकर धमकाने के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को कसूरवार करार देने और सात साल कारावास की सजा सुनाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है.  न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की अंसारी की याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस भी जारी किया है. 


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जस्टिस गवई ने राज्य सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद से कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि अंसारी को बरी करने का निचली अदालत का आदेश कानून के मुताबिक नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘यह स्थापित कानून है कि निचली अदालत के बरी करने के फैसले में दखल करते उसे पलटते वक्त अपीलीय अदालत को कहना होता है कि निचली अदालत का फैसला कानून के विपरीत है. हमें हाईकोर्ट के फैसले में यह नजर नहीं आया.’’ 

हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई अंतरिम रोक 
अंसारी की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि शिकायतकर्ता और किसी भी गवाह ने घटना की तस्दीक नहीं की, लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के बरी करने के आदेश में दखल दिया और अंसारी को कथित अपराध के लिए कसूरवार ठहरा कर सजा सुना दी. बेंच ने कहा कि वह अंसारी की याचिका पर राज्य सरकार के जवाब का अवलोकन करना चाहेगी और उसके बाद ही अंतिम फैसला सुनाएगी. अंसारी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के पिछले साल 21 सितंबर के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया गया था.

निचली अदालत ने आरोपों से कर चुकी थी बरी 
कोर्ट ने जेलर को जान से मारने की धमकी देने के मामले में अंसारी को 37 हजार रुपए जुर्माने की सजा भी सुनाई थी. मामले के मुताबिक, "2003 में लखनऊ के तत्कालीन जेलर एस के अवस्थी ने आलमबाग थाने में अंसारी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसमें उन्होंने इल्जाम लगाया था कि जेल में मुख्तार अंसारी से मिलने आए लोगों की तलाशी लेने का आदेश देने पर उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई. अवस्थी ने यह भी इल्जाम लगाया था कि अंसारी ने उनसे गाली-गलौज करते हुए उन पर पिस्तौल भी तान दी थी. इस मामले में निचली अदालत ने अंसारी को बरी कर दिया था, जिसके खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी.


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