इन 3 नॉन-मुस्लिम भारतीय ने 3 राज्य सरकारों के सांप्रदायिक फैसले पर कसवाई लगाम
Supreme Court stays directive for displaying names of eatery owners: उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और मध्य प्रदेश की भाजपा शासित सरकारों के कांवड़ यात्रा में पड़ने वाले भोजनालयों और दुकानों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी है. सरकार के इस फैसले को TMC सांसद महुआ मोइत्रा, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता आकार पटेल ने चुनौती दी थी. -
Supreme Court stays directive for displaying names of eatery owners: सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा रूट (Kanwr Yatra route) पर पड़ने वाले मुस्लिम होटल (Muslim Hotels) और ठेले वालों को नाम प्रदर्शित (Name Display) करने वाली उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर सोमवार को अंतरिम तौर पर रोक लगा दी है. जस्टिस ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की बेंच ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी कर उनके निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को जवाब देने को कहा है. बेंच ने कहा,"खाद्य विक्रेताओं को यह प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है कि उसके पास कौन से खाद्य पदार्थ हैं, लेकिन उन्हें मालिकों, स्टाफ कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए."
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने मुज़फ्फर नगर, सहारपुर और बिजनौर हाईवे के पास मुस्लिम होटल कारोबारियों और ठेले वाले विक्रेताओं को अपनी दुकान, प्रतिष्ठान और ठेले पर अपना नाम लिखने का आदेश दिया था. इसके साथ ही जो मुस्लिम कारोबारी मुस्लिम नाम छोड़कर हिंदी या हिन्दू नाम से ढाबा चलाते थे, उनके नाम भी जबरन बदलकर मुस्लिम नाम करवा दिए गए थे. बाद में उत्तर प्रदेश का अनुसरण करते हुए उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने भी ऐसे ही आदेश जारी कर दिए थे. इस आदेश को जारी करने के बाद उत्तर प्रदेश में कई मुस्लिम कर्मचारियों को उनके हिन्दू नियोक्ताओं ने नौकरी से भी निकाल दिया था. हालाँकि, सरकार के इस फैसले का विरोध मुस्लिमों से ज्यादा देश का हिन्दू कर रहा था, और हिन्दुओं ने ही इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी.
भाजपा शासित इन तीन राज्यों में इस फैसले का विपक्षी नेता भारी विरोध कर रहे थे, और इसे मुस्लिम कारोबारियों के आर्थिक बहिष्कार के तौर पर देखा जा रहा था. इस फैसले को दलित विरोधी भी बताया गया था. आशंका जाहिर की जा रही थी कि इस फैसले को अभी मुस्लिमों पर लागू किया जा रहा है और बाद में इसे दलितों पर भी लागू किया जा सकता है. इससे उनका भी सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार किया जा सकता है.
कई मुस्लिम संगठनों ने भी इसका विरोध किया था और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही थी. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सरकार के इस फैसले को किसी मुस्लिम तंजीम के बजाये हिन्दू लोगों ने किया था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों के निर्देश को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (NGO Association of Protection of Civil Rights), और सांसद एवं तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा (TMC MP Mahua Moitra) की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है. एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद (Academician Apoorvanand Jha) और मानवाधिकार कार्यकर्ता आकार पटेल ने (columnist and Human rights activist Aakar Patel) अर्जी दाखिल की थी.
मोइत्रा ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा जारी इस आर्डर पर रोक लगाए जाने की अपील करते हुए कहा कि ऐसे निर्देश समुदायों के बीच विवाद को बढ़ावा देते हैं. ये आर्डर मुस्लिम दुकान मालिकों और कारीगरों के आर्थिक बहिष्कार और उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाने के मकसद से जारी किया गया है.