Salam Bin Razzaq Passed Away: मशहूर उर्दू अदीब और शिक्षाविद्, शेख अब्दुस्सलाम अब्दुर्रज्जाक का लंबी बीमारी के बाद 7 मई में नवी मुंबई में उनके आवास पर निधन हो गया. उनके एक पारिवारिक दोस्त ने मंगलवार को यह जानकारी दी. रज्जाक 83 साल के थे. वह सलाम बिन रज्जाक से मशहूर हैं. उनके परिवार में बीवी, बेटी, बेटा और कई पोते-पोतियां और परपोते हैं. बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों, दोस्तों और साहित्यकारों की मौजूदगी में मुंबई के मरीन लाइन्स कब्रिस्तान में उन्‍हें सुपुर्दे-खाक किया गया.


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साहित्य अकादमी पुरस्कार
रज्जाक को 2004 में उनकी बेहतरीन किताब 'शिकस्ता बटन के दरमियान' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. 1941 में रायगढ़ जिले के पनवेल में पैदा हुए रज्जाक ने आम जनता की कठिनाइयों और दुखों को गहराई से समझा और लफ्जों में ढाला है. उनकी काबिलियत उनकी नज्म और नस्र दोनों में झलकती है.


रज्जाक की कहानियों की खासियत
रज्जाक की कहानियों में उनके कई जानेमाने पात्र उनके आस-पास के आम लोगों पर आधारित थे, जो जिंदा रहने की तलाश में परेशानियों का सामना करते थे और उन पर विजय प्राप्त करते थे. 1970 के दशक में उनकी प्रासंगिकता बढ़ी, जब उर्दू कथा साहित्य की लोकप्रियता कम हो रही थी. उनकी चार दर्जन से ज्यादा कहानियां ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित की गईं, जबकि उनमें से एक दर्जन से ज्यादा स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटियों के छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं.


उर्दू में अनुवाद
अपने करियर के शुरुआती दौर में नवी मुंबई में एक नगरपालिका स्कूल शिक्षक के तौर पर काम करते हुए उनकी कथाओं के तीन प्रमुख संग्रह भी प्रकाशित हुए, जिनमें दो उर्दू में और एक हिंदी में था. इतिहासकार होने के अलावा, उन्‍होंने कई मराठी कथाओं का उर्दू में अनुवाद किया.


लोगों ने किया दुख का इज्हार
छह दशक से ज्यादा के अपने लंबे साहित्यिक करियर में रज्जाक को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ग़ालिब पुरस्कार, महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार और कई दूसरे सम्मानों से सम्मानित किया गया. उर्दू साहित्यिक बिरादरी की बड़ी हस्तियों, शिक्षाविदों और अन्य लोगों ने रज्जाक के इंतेकाल पर गम का इज्हार किया है. कई लोगों ने इसे 'उर्दू साहित्य में एक युग का अंत' करार दिया है. रज्जाक की कुछ साहित्यिक कृतियों में 'नंगी दोपहर का सिपाही', 'मुअब्बिर' और 'जिंदगी अफसाना नहीं' शामिल हैं.