नई दिल्लीः देश में हिंदू धर्म के चार प्रमुख पीठों में एक द्वारकाशारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopananda Saraswati) का इतवार को निधन हो गया. उन्होंने मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में के गोटेगांव के नजदी अपने झोतेश्वर धाम में आखिरी सांस ली. वे 99 साल के थे. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. आखिरी वक्त में शंकराचार्य के अनुयायी और शिष्य उनके पास थे. स्वामी स्वरूपानंद को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. उनके निधन की सूचना से उनके श्रद्धालुओं में शोक की लहर दौड़ गई है और बड़ी संचया में भक्तों की भीड़ नरसिंहपुर में आश्रम पहुंचने लगी है. 

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स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopananda Saraswati) का जन्म मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में 2 सितंबर 1924 को हुआ था. उनके माता-पिता ने बचपन में उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. सिर्फ नौ साल की उम्र में उन्होंने संसारिक मोह माया का त्याग कर धर्म के रास्ते पर चलना और मानव जाति के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दी थी. उन्होंने उत्तरप्रदेश के काशी में स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली थी. स्वामी स्वरूपानंद को वर्ष 1950 में दंडी संन्यासी बनाया गया और 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि दी गई. 

आजादी के पहले स्वामी स्वरूपानंद ने स्वाधीनता आनंदोलन में भी हिस्सा लिया था. वह लंबे समय तक राम मंदिर निर्माण आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं और उसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ी. 


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