Aam Chunav 2024: मुलायम सिंह के बिना अखिलेश के लिए राह नहीं आसान; लोकसभा इलेक्शन में इन चुनौतियों का सामना
Lok Sabha Chunav 2024: समाजवादी पार्टी के सरबराह और कई बार यूपी के सीएम रह चुके नेताजी मुलायम सिंह के निधन के बाद अखिलेश यादव के सामने कई सियासी चुनौतियां हैं. यूपी में अपोजिशन गठबंधन को अखिलेश यादव लीड कर रहे हैं. लेकिन मुलायम सिंह के बगैर वह पहला इलेक्शन लड़ रहे हैं.
Akhilesh Yadav First Lok Sabha Election Without Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के मुखिया नेताजी मुलायम सिंह के बिना पार्टी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही है. नेता जी के उत्तराधिकारी और पार्टी के कौमी सद्र होने के नाते यह इलेक्शन अखिलेश यादव के लिए सख्त इम्तेहान है. साथ ही उन पर पार्टी को बड़े मकाम पर पहुंचाने और उसका पुराना दबदबा कायम रखने की भी बड़ी चुनौती है. इस सिलसिले में सियासी माहेरीन का कहना हैं कि, SP के गठन के बाद से अब तक जितने भी इलेक्शन हुए, उसमें मुलायम सिंह का काफी अहम रोल रहा था. लेकिन इस बार हालात अलग हैं. यूपी में अपोजिशन गठबंधन को अखिलेश यादव लीड कर रहे हैं. लेकिन मुलायम सिंह के बगैर वह पहला इलेक्शन लड़ रहे हैं. जाहिर सी बात हैं कि उनको कई कई की चुनौतियों का सामना करना होगा.
पिछले दो लोकसभा इलेक्शन में समाजवादी पार्टी कुछ खास मुजाहिरा नहीं कर पाई है. 2012 में अखिलेश यादव ने यूपी के सीएम ओहदे की कमान संभाली थी. इसके बाद 2014 और 2019 में हुए इलेक्शन में समाजवादी कुछ खास कमाल नहीं कर पाई. जानकारों का कहना है कि,2024 में अखिलेश यादव के लिए बड़ा चैलैंज इस वजह से भी है कि 2017 और 2022 दो असेंबली इलेक्शन में भी उन्हें हार का मजा चखना पड़ा. लेकिन यूपी में अहम अपोजिशन होने के नाते वह विपक्ष में लीड भूमिका में हैं. लेकिन वो अपने गठबंधन के साथियों को संजोए रखने में नाकाम साबित हो रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के एक सीनियर लीडर ने बताया कि जमीन से जुड़े लीडर होने की वजह से मुलायम सिंह को 'धरती पुत्र' का खिताब दिया गया. वह पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम करते रहे. इसके साथ ही पिछड़े वर्ग के लीडर्स से उनका तालमेल बेहतर होने की वजह से यादव के साथ दूसरी पिछड़ी जातियों में भी वह अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रहे. इटावा, मैनपुरी, कन्नौज में यादव बहुल सीट पर मजबूत MY समीकरण की वजह से हमेशा मैदान में बाजी मारते नजर आए. यादव के आलवा दूसरी असरदार पिछड़ी जातियों पर पकड़ से वह हमेशा आगे रहे.
लेकिन, अब हालात अलग हैं. मौजूदा दौर में पार्टी की कमान अखिलेश यादव के हाथों में है. लेकिन, अभी वो सियासत के मैदान के पक्के खिलाड़ी नहीं बन पा रहे है. पार्टी के सीनियर लीडर ने आगे बताया कि, उन्हें अपने चाचा को अहम रोल में उतारना चाहिए, क्योंकि उनके पास जमीनी तजुर्बा है. इसके अलावा पुराने लीडरों को नजर अंदाज करने की वजह से लोग पार्टी छोड़ रहे हैं. इस बात का उन्हें खास ख्याल रखना होगा. सीनियर सियासी तजज़ियाकार रतनमणि लाल कहते हैं कि मुलायम और अखिलेश की समाजवादी पार्टी में काफी फर्क है. मुलायम सिंह यादव की इलाके और रियासत के कार्यकर्ताओं पर जमीनी पकड़ थी, जबकि अखिलेश की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है.