Hazrat Imam Husain: हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने रसूल अल्लाह स.अ. से रिवायत है कि एक रोज़ हम आंहज़रत के साथ मस्जिद में बैठे हुए थे कि इतने में हुसैन इब्ने अली मस्जिद में दाख़िल होते हैं , आप ने हमें मुख़ातिब करके फ़रमाया 'जो जन्नत के सरदार को देखना चाहता हो वो हुसैन इब्ने अली को देख ले'. इसी तरह एक और मशहूर वाक़्या है कि एक रोज़ पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. मस्जिद में मेंबर पर ख़ुत्बा इरशाद फ़रमा रहे थे कि हुसैन बिन अली मस्जिद में दाख़िल हुए, हुसैन बहुत कमसिन थे मस्जिद के फ़र्श पर गिर पड़े, हज़रत मिंबर से ये देख रहे थे जैसे ही हुसैन बिन अली फ़र्श पर गिरे सरकारे मदीना ने ख़ुत्बा तोड़ दिया और हुसैन बिन अली को गोद में उठा कर प्यार किया और हाथों पर बुलंद करके नमाज़ियों से कहा 'ये मेरा हुसैन है इसे पहचानो'.


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हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम रसूल अल्ला स.अ. की बेटी फ़ात्मा ज़हरा के छोटे बेटे थे. आप की विलादत 3 शाबान 4 हिजरी को मदीना में हुई. पैग़म्बरे अकरम स.अ. ने आप के कान में अज़ान दी, मुंह में अपना लुआब-ए-दहन डाला, आपको गोद में लिया और रोने लगे, बेटी फ़ात्मा ने आप से रोने का सबब पूछा तो आपने फ़रमाया कि 'जिब्रीले अमीन ने ख़बर दी है कि मेरे बाद मेरा नवासा हुसैन अर्ज़े नैनवा में शहीद किया जाएगा, जिब्रील ने मुझे उस मक़ाम की मिट्टी लाकर दी है और बताया है कि ये ज़मीन मेरे बच्चे की शहादतगाह बनेगी'.


हुसैन इब्ने अली बचपन से ही रहमदिल थे, सब्र करते, शुक्र करते और ज़रुरतमंदों की मदद किया करते. एक दिन हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा कि कई बच्चे मिलकर रोटी का एक टुकड़ा मिल बांट कर खा रहे हैं इन बच्चों ने इमाम से भी दरख़्वास्त की कि आप भी इस रोटी में से तनावुल फ़रमाएं, आपने बच्चों की बात मान ली और उनकी रोटी के टुकड़े में से तनावुल फ़रमाया, उसके बाद उन तमाम बच्चों को लेकर घर आए उन्हें खाना खिलाया और नए कपड़े पहनाए, उसके बाद आपने फ़रमाया ये मुझसे ज़्यादा सख़ी हैं क्योंकि इन्होनें अपना सब कुछ बख़्श दिया था लेकिन मैने अपने माल से कुछ ही हिस्सा इन्हे दिया.


हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी हयाते तैय्यबा में पच्चीस मर्तबा प्यादा हज किया जबकि आपके हमराह अरबी नस्ल के घोड़े बग़ैर सवार के हुआ करते थे. इमामे आली मक़ाम काफ़ी वसाएल और ज़राए के हामिल थे और उनसे फ़ायदा उठा सकते थे लेकिन आपने बंदगी और ख़ुज़ू-ओ- ख़ुशू के तक़ाज़ों के मुताबिक़ पैदल सफ़रे हज किया.


इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत से दुनिया बाख़ूबी वाक़िफ़ है, पैग़म्बरे अख़िरुज़्ज़मा के बाद कैसे हालात पैदा किए गए, मदीना रहने के क़ाबिल नहीं रहा तो आपने मदीने से मक्का का सफ़र किया, मक्के के हालात भी वैसे ही हुए तो आप कूफ़ा रवाना हुए लेकिन कूफ़े के हालात इतने ख़राब हुए कि रास्ते में ही आपने कूफ़ा जाने का इरादा बदल दिया . कूफ़े से पहले ही आप लौट रहे थे कि आपको यज़ीद के लशकर ने कर्बला नाम के जंगल में चारो तरफ़ से घेर लिया और आख़िरकार 10 मोहर्रम सन 61 हिजरी को इराक़ की सरज़मीन कर्बला में तीन दिन की भूख और प्यास के बाद आप की अज़ीम शहादत वाक़े हुई.


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