श्रीनगरः नशा भारत सहित दुनियाभर की समस्या है. देश के कई राज्यों में यह महामारी का रूप ले चुका है. इससे देश की युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है. कुछ समय पहले पंजाब में नशे की समस्या पर 'उड़ता पंजाब’ नाम की एक फिल्म बनी थी, जिसे काफी सराहा गया था. अब इसे मुद्दे पर एक शॉट फिल्म बनी है, जिसका नाम है, आतिश-ए-तिलिज्म. खास बात यह है कि इस फिल्म को कश्मीर में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अर्वाड दिया गया है. 


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पत्रकार और निर्देशक अनिल कुमार सिंह की इस 16 मिनट की  डॉक्यूमेंट्री फिल्म को 26 अक्टूबर को श्रीनगर के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था. अनिल कुमार सिंह को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया है. उत्सव में क्यूबा, ​​संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान और फिलिस्तीन सहित सत्रह देशों की फिल्में दिखाई गईं थी.

अनिल कुमार सिंह ने इस फिल्म में ड्रग्स के खिलाफ कश्मीर की एकजुट लड़ाई के बारे में बात करते हैं, जिसने कई किशोरों के जीवन को बर्बाद कर दिया है. छात्रों, डॉक्टरों, स्थानीय एनजीओ कार्यकर्ताओं और प्रशासन के साक्षात्कार के माध्यम से, फिल्म इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे नागरिक समाज और आम लोगों ने नशे के खिलाफ बढ़ते पारिस्थितिकी तंत्र को बनाने के लिए एक साथ आ गए हैं. 


डॉक्यूमेंट्री में वर्णित समस्या का मूल कारण, सुरंगों के माध्यम से सीमा पार से भारी मात्रा में तस्करी की जाने वाले मादक पदार्थ हैं. इन नशीले पदार्थों से मिलने वाली रकम का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों को वित्त पोषित करने के लिए किया जाता है. इसे 'नार्को-आतंकवाद' कहा जाता है. 


कुमार के मुताबिक, सिगरेट और मारिजुआना जैसी पौधों पर आधारित दवाओं का उपयोग इस क्षेत्र में आम है. हालांकि, सीमा पार से लाई जाने वाली सिंथेटिक दवाएं ही कश्मीर में युवाओं के जीवन को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है. डॉक्यूमेंट्री में इन युवा नशेड़ियों के मानस को उजागर करने के लिए कविता को शामिल किया गया है.


      सिंह जब एक पत्रकार के रूप में कश्मीर में काम कर रहे थे, तब उन्होंने स्कूली छात्रों के समूहों को अंधेरी गलियों और खुले बगीचों में मादक पदार्थों में लिप्त देखा था. क्षेत्र में नशीली दवाओं के व्यापक और सामान्य रूप से उपयोग ने उन्हें इस पर एक वृत्तचित्र बनाने के लिए प्रेरित किया था. उन्होंने बताया कि नशे की लत, विशेष रूप से किशोरों में अधिक जटिल है, क्योंकि यह उनके और उनके माता-पिता के बीच की दूरी को बढ़ाती है, जिससे वे असुरक्षित और अकेले हो जाते हैं.


 नशीली दवाओं से जुड़ा कलंक इन युवाओं नशे की लत की तरफ धकेलता है. पकड़े जाने के डर से वे झूठ बोलते हैं और आवेगपूर्वक चोरी करते हैं. कश्मीर में फिल्माई गई और तुर्की फिल्म निर्माता ओजगे उयार के साथ बनाई गई ये डॉक्यूमेंट्री, इन समस्साओं को दर्शाती है. 


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