नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ मंगलवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना को एक याचिका पत्र लिखा, जिसमें ’पैगंबर टिप्पणी विवाद’ के बाद उत्तर प्रदेश में हाल ही में बुलडोजर से विध्वंस अभियान चलाए जाने के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेने का अनुरोध किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों सहित 12 पूर्व न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी, न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली और वरिष्ठ वकीलों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में शीर्ष अदालत से राज्य में ’कानून व्यवस्था को बिगड़ने’ से रोकने का आग्रह किया गया है.


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हिंसक कार्रवाई करने की मंजूरी दे दी है
पत्र में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों की बात सुनने और लोगों को शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन में शामिल होने की इजाजत देने के बजाय उत्तर प्रदेश प्रशासन ने ऐसे लोगों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने की मंजूरी दे दी है. 

मुख्यमंत्री ने दिए कार्रवाई को नजीर बनाने के आदेश 
याचिका में कहा गया है, “मुख्यमंत्री ने कथित रूप से आधिकारिक तौर पर अधिकारियों को दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे एक उदाहरण स्थापित हो, ताकि कोई भी अपराध न करे या भविष्य में कानून अपने हाथ में न ले. 

पुलिस को गैर कानूनी प्रताड़ना के लिए प्रोत्साहित किया 
योगी ने आगे निर्देश दिया है कि गैरकानूनी विरोध-प्रदर्शन के दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 और उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1986 लागू किया जाए. इन्हीं टिप्पणियों ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरकानूनी तरीके से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित किया है.


प्रदर्शनकारियों के पीटे जाने का वीडियो हो रहा है वायरल 
इसके अलावा, कहा गया है कि पुलिस हिरासत में मुस्लिम नौजवानों को लाठियों से पीटे जाने, प्रदर्शनकारियों के घरों को बिना किसी पूर्व सूचना के गिराया जा रहा है और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों का पुलिस द्वारा पीछा किए जाने और पीटे जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं. इन सब ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है.

मौलिक अधिकारों का मजाक बनाया जा रहा 
प्रशासन द्वारा इस तरह का क्रूर दमन नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है और इस तरह संविधान व राज्य सरकार द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों का मजाक बनाया जा रहा है.

क्रूर दमन को रोकने के लिए मामले का संज्ञान लेने की अपील 
पत्र में आग्रह किया गया है कि हम सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था के हालात, खासकर पुलिस और राज्य के अफसरों की मनमानी और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर क्रूर दमन को रोकने के लिए तत्काल स्वतः कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं.

याचिका पर इन लोगों ने किए दस्तखत 
याचिका पत्र पर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.चंद्रू और कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मोहम्मद अनवर सहित अन्य न्यायाधीशों के अलावा, वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंद्र उदय सिंह, श्रीराम पंचू, प्रशांत भूषण और आनंद ग्रोवर ने भी हस्ताक्षर किए हैं.

पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी से शुरू हुआ विवाद 
गौरतलब है कि भाजपा के पूर्व नेताओं नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा हाल ही में पैगंबर मोहम्मद पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं, जिसके बाद मुल्क के कई हिस्सों और खास तौर पर उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन हुए है. इस मामले में पार्टी दो प्रवक्ताओं में से एक को निलंबित और दूसरे को निष्कासित कर चुकी है, लेकिन प्रदर्शनकारी उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. इस मामले में कई स्थानों पर विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसके बाद पुलिस ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में 330 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है. वहीं प्रयागराज में पुलिस ने हिंसा के आरोपी एक शख्स की लगभग पांच करोड़ रुपये कीमत के घर को बुल्डोजर से तोड़ दिया. इसके अलावा कई अन्य प्रदेशों में भी प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है.  


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