`तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही, तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ` साहिर लुधियानवी के शेर
साल 1939 में जब साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhiyanvi) सरकारी कालेज के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) से उनका प्रेम हुआ. बताया जाता है कि अमृ्ता की शादी साहिर से इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि साहिर एक तो मुसलमान थे दूसरे वह गरीब भी थे
नई दिल्ली: साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) उर्दू जबान के मशहूर शायर और बॉलीवुड के बड़े लिरिसिस्ट थे. उनकी पैदाईश 8 मार्च 1921 को लुधियाना में हुई. साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर (Abdul Hayee) है. मां-बाप के बीच अलगाव के बाद वह अपनी मां के साथ रहने लगे. साहिर की तालीम लुधियाना के खा़लसा हाई स्कूल में हुई. साल 1939 में जब वे सरकारी कालेज के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ. बताया जाता है कि अमृ्ता की शादी साहिर से इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि साहिर एक तो मुसलमान थे दूसरे वह गरीब भी थे. कॉलेज के दिनों से ही उन्होंने लिखना शुरु किया. सन् 1943 में साहिर लाहौर आ गये. यहां उनकी किताब तल्खियाँ छपी. साल 1945 में वे उर्दू अखबार अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक बने. इसके बाद पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने. साल 1949 में साहिर दिल्ली आ गये. कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बंबई (वर्तमान मुंबई) आ गये जहाँ पर व उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के सम्पादक बने. फिल्म आजादी की राह पर (1949) के लिये उन्होंने पहली बार गीत लिखे. साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिये गीत लिखे. सचिनदेव बर्मन के अलावा एन. दत्ता, शंकर जयकिशन, खय्याम जैसे संगीतकारों ने उनके गीतों की धुनें बनाई हैं. 59 साल की उम्र में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का इंतेकाल हो गया.
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
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देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
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ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
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हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
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कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
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इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से
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अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
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हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही
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गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
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तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँडो
चाहा था तुम्हें इक यही इल्ज़ाम बहुत है
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