UP Loksabha by Election Voting: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीट पर आज उपचुनाव के लिए वोटिंग हो रही है. ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के लिए पारंपरिक मानी जाती हैं. रामपुर से आजम खान सांसद थे, इसी तरह आजमगढ़ की सीट से सपा चीफ अखिलेश यादव एमपी थे, लेकिन वह दोनों जब यूपी विधानसभा के सदस्य चुने गए तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. तो अब ऐसे में सपा को जहां अपने गढ़ को बचाने के लिए चुनौती है, तो वहीं बीजेपी के सामने अपने सियासी वर्चस्व को कायम रखने की लड़ाई है. इधर, मायावती की पार्टी बीएसपी के सामने अपने सियासी वजूद को बचाए रखने का सवाल है.


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मायावती ने खेला दलित-मुस्लिम कार्ड 
मायावती ने इस बार आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में दलित-मुस्लिम सियासी कार्ड का इस्तेमाल किया है, जिसका टेस्ट भी होना है. ऐसे में देखना ये है कि आजमगढ़ और रामपुर में कौन पार्टी बाजी मारती है.


रामपुर में कोई उम्मीदवार नहीं देकर सियासी पैगाम देने की कोशिश
आजमगढ़ से सपा ने धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने दिनेश लाल यादव (निरहुआ) पर भरोसा जताया है और बसपा की की तरफ से शाह आलम  उर्फ गुड्डू जमाली किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में देखा जा सकता है कि बसपा ने आजमगढ़ में मुस्लिम कैंडिडेट को मैदान में उतार कर दलित-मुस्लिम कार्ड चला है, जबिक रामपुर में कोई उम्मीदवार नहीं देकर राज्य के मुसलमानों को एक सियासी पैगाम देने की कोशिश की है.


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लगातार गिरता जा रहा सपा का वोट बैंक
दरअसल, पिछले कई चुनाव से बसपा का सियासी ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है, जिसका सिलसिला अभी तक नहीं रुका है. साल 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी खराब था. वहीं साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर सिमट गई. इतना ही नहीं बल्कि बसपा का वोट बैंक भी सूबे में गिरकर 12 फीसदी पर आ गया. अब मायावती के सामने अपनी पार्टी के सियासी वजूद को बचाए रखने के सवाल पैदा हो गया है. 


साल 2014 में मुलायम सिंह को परेशान कर चुकी बसपा
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने शाह आलम गुड्डू जमाली को आजमगढ़ से मैदान में उतारा था. उस वक्त मायावती ने यहां दलित-मुस्लिम कार्ड का इस्तेमाल किया था. उस वक्त बसपा भले ही ये सीट नहीं जीत सकी थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव को जीतने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. अब फिर बसपा ने आजमगढ़ में सपा के यादव-मुस्लिम समीरकरण के सामने दलिस-मुस्लिम गठजोड़ फॉर्मूला चला है. ये बात भी दिलचस्प है कि मायावती ने रामपुर में मुस्लिम वोटों की सहानुभूति हासिल करने के लिए रायपुर से किसी उम्मीदवार नहीं उतारा है.


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