नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश असेंबली चुनाव के नतीजों ने सबको हैरत मे डाल दिया है. एमवाय समीकरण को लेकर बड़े-बड़े सियासी माहिरों के दावे फेल होते नजर आए. शामली, मुजफ्फरनगर और मेरठ छोड़कर पश्चिमी यूपी के किसी भी जाट बहुल इलाका में सपा-रालोद गठबंधन अपना असर नहीं दिखा सका. बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, हापुड़, मथुरा, आगरा और हाथरस जैसे जिले की जाट बहुल सीटों पर भी बीजेपी ने एकतरफा जीत हुई है. यानी यादव और मुसलामानों का गठबंधन अब उत्तर प्रदेश में अपना प्रभाव खोता हुआ दिखाई दे रहा हैं. 


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जाट लैंड में भी फेल हुआ सपा गठबंधन
सपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी जयंत चौधरी की आरएलडी महज आठ सीटों पर चुनाव जीत सकी है, जबकि उसने 31 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जाट बेल्ट में बीजेपी गुर्जर, कश्यप, सैनी, ठाकुर, वाल्मिकी, शर्मा, त्यागी जैसी जातियों के समीकरण बिठाने में कामयाब रही. भाजपा ने जब सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद किया तभी साफ हो गया था कि अब इलाकाईयत और जातपरस्ती के दिन लदने वाले हैं. 


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मुसलामानों के गढ़ में भाजपा ने निकाली सीट 
किसी भी चुनाव में सांप्रदायिकता को बीजेपी के लिए जीत की गारंटी माना जाता है. पिछले चुनाव की तरह इस बार भी इसी बुनियाद पर वोटिंग हुई और भाजपा बहुमत हासिल करने में कामयाब रही. हालांकि, यूपी असेंबली में पिछली बार से ज्यादा मुसलमानों की नुमाईंदगी बढ़ी है, लेकिन देवबंद, मेरठ नॉर्थ, बुलंदशहर, तुलसीपुर, जौनपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीट बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही. 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी में थोड़ा इजाफा हुआ है. गुजिश्ता इंतेखाब के मुकाबले इस बार 10 मुस्लिम उम्मीदवार ज्यादा जीते हैं.


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'सिर्फ मुस्लिम वोटर्स उम्मीदवार को नहीं जिता सकते’
पिछली बार से इस बार ज्यादा मुस्लिम उम्मीदारों के जीतने के सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र द्विवेदी बताते हैं, ‘‘जिस पार्टी का आधार वोट बैंक मजबूत होता है, उसी पार्टी का मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव में जीतता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी केवल मुस्लिम मतदाताओं के वोट के सहारे नहीं जीत सकता, बल्कि उसे पार्टी का आधार वोट बैंक भी चाहिए. जैसे सपा का आधार वोट बैंक यादव है. अगर किसी मुस्लिम बाहुल्य सीट पर प्रत्याशी को यादव वोट भी मिल जाए तो वह मुस्लिम-यादव गठजोड़ से चुनाव जीत जाता है.’’


AIMIM को मुसलमानों ने क्यों किया नजर अंदाज?
एआईएमआईएम के उम्मीदवारों के चुनाव में बुरी तरह से नाकामयाब होने के सवाल पर एक अखबार के संपादक हिसाम सिद्दीकी ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को यह अच्छी तरह से पता है कि सिर्फ मुस्लिम वोट के सहारे कोई भी चुनाव नहीं जीत सकता, इसलिए वे एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी की बातों में नहीं आए और उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया.’’ सिद्दीकी ने कहा कि मुसलमान उनकी चुनावी रैलियों में खूब जमा हुए लेकिन यह भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो पाई."


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