Anwar Jalalpuri Biography: नए साल के शोर-शराबे की आवाज़ थमी ही थी कि उर्दू दुनिया के सबसे रौशन चरागों में से एक अनवर जलालपुरी इस दुनिया को अलविदा कह गए. वो लोग जो कुछ देर पहले तक नए साल मुबारकबाद पेश कर रहे थे, अब इस चिराग के बुझ जाने पर गम में डूब गए थे. जी हां, मशहूर शायर और नाज़िम अनवर जलालपुरी आज ही के दिन 2018 को इस दुनिया से चले गए थे. अनवर जलालपुरी उन शायरों में शुमार किए जाते हैं जिन्होंने जिंदगी की कड़वी हकीकत को अपने शेरों में उतारा है. इसीलिए वो लिखते हैं:-


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मैंने लिक्खा है उसे मर्यम ओ सीता की तरह
जिस्म को उस के अजंता नहीं लिक्खा मैंने


मेरा हर शेर हक़ीक़त की है ज़िंदा तस्वीर 
अपने अशआर में क़िस्सा नहीं लिक्खा मैंने


अनवर जलालपुरी को लोग एक नाज़िम के तौर पर ज्यादा जानते हैं. क्योंकि निज़ामत के दौरान वो जिस तरह का लहजा और ज़बान का इस्तेमाल करते थे, वो बहुत लोगों को बहुत प्रभावित करता था. वो मुशायरों में शायर को दावत देने से पहले चंद लाइनों में ऐसा माहौल बना दिया करते थे कि शायर को किसी भी तरह की मेहनत नहीं करनी होती थी. ये हुनर बहुत कमाल का होता है जो हर किसी के पास नहीं होता. अनवर जलालपुरी के इस फन से शायरों को बहुत मदद मिलती थी, क्योंकि कई बार कलाम पढ़ने आने वाले शायर को काफी वक्त माहौल बनाने में लग जाता था. 


एक इंटरव्यू में बात करते हुए अनवर जलालपुरी साहब ने अपनी निज़ामत को लेकर कहा कि 50 की दहाई के दो मशहूर नाज़िम मलिकज़ादा साहब और मलिक कुरैशी साहब से मैंने बहुत कुछ सीखा. उन्होंने कहा कि इन दोनों हस्तियों में हालांकि बहुत कुछ अलग था लेकिन मैंने इन दोनों सीखा और यही वजह है कि मेरी निज़ामत में इन दो दिग्गजों का अक्स देखने को मिलता है. 


कब पढ़ा पहला मुशायरा?
रेख्ता के साथ बातचीत करते हुए अनवर जलालपुरी साहब से सवाल किया गया कि आपको पहला मुशायरा कैसा मिला? जवाब में उन्होंने बताया कि 1976 में उन्हें पहली बार किसी मुशायरे में कलाम पढ़ने का मौका मिला. इससे पहले वो आसपास के इलाकों में होने वाले मुशायरों में सिर्फ निज़ामत किया करते थे. लेकिन 1976 में इमरजेंसी के दौरान उनके उस्ताद मलिकज़ादा साहब ने उन्हें लखनऊ में एक मुशायरे के लिए दावत थी. इस मुशायरे का उद्घाटन उस वक्त के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने किया था.


रातों-रात मिल गई शोहरत
1976 के मुशायरे को अनवर जलालपुरी साहब अपने लिए बहुत अहम मानते हैं. उन्होंने कहा कि मेरे उस्ताद मलिकजादा साहब को मुझपर इतना ज्यादा भरोसा था कि राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की तकरीर के फौरन बाद उन्होंने मुझे माइक थमा दिया था. इस मुशायरे के बाद मैं रातों-रात ऑल इंडिया अनाउंसर बन गया था. अनवर जलालपुरी कहते हैं कि मेरे उस्ताद मलिकज़ादा साहब के अहसानों का बदला मेरी नस्लें भी नहीं उतार सकतीं. 


बता दें कि अनवर जलालपुरी ने अपने करियर में कई अहम किताबें लिखीं. जिनमें,"खारे पानी का सिलसिला", "खुशबू की रिश्तेदारी", "रोशनाई के सफीर" वगैरह शामिल हैं. इसके अलावा अनवर जलालपुरी साहब ने श्रीमद भागवत गीता को भी उर्दू जबान में ट्रांस्लेट किया है. अनवर जलालपुरी अंग्रेज़ी भाषा के उस्ताद रहे, उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के चेयरमैन होने के अलावा कई अदबी और सामाजिक संस्थाओं के मेंबर के तौर पर अपनी खिदमात दी हैं. 


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