Jaun Elia Poetry: जौन एलिया उर्दू के मशहूर शायर, पत्रकार, विचारक, अनुवादक, गद्यकार, बुद्धिजीवी थे. जौन एलिया की पैदाइश 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुई. यह अब के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार होते हैं. शायद, यानी, गुमान इनकी दो मशहूर किताबें हैं. जौन एलिया 8 नवंबर 2002 में इंतेकाल कर गए. जौन एलिया पाकिस्तान के साथ भारत और पूरी दुनिया में अदब के लिए जाने जाते हैं.


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जो गुज़ारी न जा सकी हम से 
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है 


सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं 
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं 


ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता 
एक ही शख़्स था जहान में क्या 


क्या सितम है कि अब तिरी सूरत 
ग़ौर करने पे याद आती है 


मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ 
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से 


किस लिए देखती हो आईना 
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो 


ज़िंदगी किस तरह बसर होगी 
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में 


और तो क्या था बेचने के लिए 
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं 


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कौन इस घर की देख-भाल करे 
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है


सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर 
अब किसे रात भर जगाती है 


इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने 


उस गली ने ये सुन के सब्र किया 
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं 


मुझे अब तुम से डर लगने लगा है 
तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या 


हम को यारों ने याद भी न रखा 
'जौन' यारों के यार थे हम तो 


कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं 
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे 


मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस 
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं 


तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर 
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं 


सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई 
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई 


जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ 
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते 


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