Poetry on Trust: `तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था` भरोसे पर शेर
Poem on Trust: शायर का जब भी दिल टूटता है तो वह उसे भरोसा टूटने का नाम देता है. शायर भरोसा तोड़ने को किसी का कल्त करने के ज्यादा गुनाह मानते हैं. पढ़ें भेरोसे पर बेहतरीन शेर
Poem on Trust: हर इंसान को किसी न किसी पर भरोसा करना पड़ता है. बच्चा अपनी मां पर भरोसा करता है. यह ऐतबार या भरोसा ही है कि महबूब अपने आशिक के साथ जिंदगी गुजारने के लिए राजी हो जाता है. अगर दोनों के दरमियान भरोसा न हो तो दोनों एक दूसरे के साथ एक पल भी नहीं गुजार पाएंगे. कई शायरों ने भरोसे को अपने शेर का मौजूं बनाया है और उस पर अपनी कलम चलाई है.
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ए'तिबार किया
इश्क़ को एक उम्र चाहिए और
उम्र का कोई ए'तिबार नहीं
किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह
लुटा के बैठोगे सब्र ओ क़रार मेरी तरह
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था
मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता
किसी ने तोड़ दिया ए'तिबार टूट गया
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
धूप इतनी थी कि साया कर लिया
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया
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