Poem on Trust: हर इंसान को किसी न किसी पर भरोसा करना पड़ता है. बच्चा अपनी मां पर भरोसा करता है. यह ऐतबार या भरोसा ही है कि महबूब अपने आशिक के साथ जिंदगी गुजारने के लिए राजी हो जाता है. अगर दोनों के दरमियान भरोसा न हो तो दोनों एक दूसरे के साथ एक पल भी नहीं गुजार पाएंगे. कई शायरों ने भरोसे को अपने शेर का मौजूं बनाया है और उस पर अपनी कलम चलाई है.


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आदतन तुम ने कर दिए वादे 
आदतन हम ने ए'तिबार किया 


गुलज़ार


इश्क़ को एक उम्र चाहिए और 
उम्र का कोई ए'तिबार नहीं 


जिगर बरेलवी


किसी पे करना नहीं ए'तिबार मेरी तरह 
लुटा के बैठोगे सब्र ओ क़रार मेरी तरह 


फ़रीद परबती


दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था 
तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था


अज़हर फ़राग़


मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता 
किसी ने तोड़ दिया ए'तिबार टूट गया 


अख़्तर नज़्मी


या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है 
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को 


शहरयार


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झूट पर उस के भरोसा कर लिया 
धूप इतनी थी कि साया कर लिया 


शारिक़ कैफ़ी


मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं 
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना 


आसिम वास्ती


मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन 
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर 


उमर अंसारी


दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है 
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता 


अहमद फ़राज़


न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद 
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था 


फ़िराक़ गोरखपुरी


ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया 
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया 


दाग़ देहलवी


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