Akbar Allahabadi Birthday Special: उनकी पैदाइश 16 नवंबर 1846 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुई थी. वे मज़हबी रूढ़िवादिता और ढोंग के सख्त खिलाफ थे. उन्होंने अपने शेर में ऐसी चीज़ों पर खूब तंज किया है. अकबर के शेर ज़माना और ज़िंदगी का आईना हैं.
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Akbar Allahabadi Birthday Special: 'अकबर' इलाहाबादी (Akbar Allahabadi) उर्दू के दिलेर शायर थे. उनका असली नाम 'सय्यद अकबर हुसैन रिज़वी' (Syed Akbar Hussain Rizvi) था. उन्होंने जिंदगी के कई पहलुओं पर शेर लिखे हैं. हर आम खास उन्हें आपना शायर समझता था क्योंकि वह अवाम की बात करते थे. वह शायर थे, शोर नहीं मचाते थे. उर्दू के नक्काद शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी (Shamsur Rahman Faruqi) के मुताबिक मीर तक़ी मीर के बाद अकबर इलाहाबादी ने अपनी शायरी में उर्दू ज़बान के सबसे ज़्यादा अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए हैं. अकबर अदालत में एक छोटे मुलाजिम थे, लेकिन बाद में क़ानून की अच्छी जानकारी हासिल करके सेशन जज के तौर पर रिटायर हुए. 09 सितंबर 1921 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए.
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
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