उर्दू का दायरा है बड़ा, यूपी सरकार के कदम से मिलेगी मज़बूती
Urdu: राजभाषा अधिनियम 1951 द्वारा उत्तर प्रदेश को वर्ष 1989 में राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में उर्दू घोषित किया गया था. हिंदी के बाद, उर्दू राज्य में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
Lucknow: भाषाएं लोगों को जोड़ती हैं. हिंदी और उर्दू महज़ भाषाएं नहीं हैं, बल्कि इनमें समाज का अश्क भी बसता है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि दोनों एक दूसरे की पूरक हैं. इसी कारण यूपी में उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा हासिल है.
यूपी के उन्नाव के रहने वाले मोहम्मद हारुन ने चिट्ठी लिखकर शिकायत की थी कि उर्दू दूसरी राजभाषा के रूप में मान्यता होने के बावजूद यूपी के विभिन्न विभागों में इसका पालन नहीं हो रहा है. इसके बाद सरकार ने इसका संज्ञान लिया और सरकारी अस्पतालों के नाम हिंदी के साथ-साथ उर्दू में भी लिखे जाने के निर्देश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को दिए गए हैं. इसी के बाद से उर्दू की साहित्य में कितनी दखल, इसका आदेश का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे जानने का प्रयास देश की जानी मानी हस्तियों से किया गया है.
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'पहले उर्दू में लिखा जाता था नाम'
प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. शारिब रुदौलवी ने कहा कि उर्दू प्रांत की दूसरी सरकारी भाषा है. इससे पहले विभागों में सभी के नाम हिंदी और उर्दू दोनों भाषओं लिखे जाते थे. अस्पताल वगैरह शायद नहीं थे. सरकार ने इसे शामिल कर लिया है, यह अच्छी बात है. भाषाओं की आपस मे कोई लड़ाई नहीं है. कोई जितनी भी भाषाएं सीखे, यह अच्छी बात है. यूरोप में तो बच्चे छुट्टी के दिनों में बाहर की भाषाएं सीखने चले जाते हैं. कनाडा में रहता है तो फ्रेंच सीखने चला जाता है. फ्रांस वाला जर्मन सीखने बाहर चला जाता है. उर्दू में नाम लिखे जाने से पब्लिक के लिए सहूलियत होगी, यह अच्छी बात है. साहित्य जगत में उर्दू का दखल हिंदी के बराबर ही है. मुंशी प्रेमचन्द्र उर्दू के ही लेखक थे. उनकी कहानियां उर्दू में लिखी गयी. फिर आखिर में जब किताबें बिकना बंद हो गई तब उनके मित्र ने उनकी किताबों का अनुवाद हिंदी में किया था.
'उर्दू को राजभाषा सरकार ने बनाया है'
जहां तक सहित्य में गालिब, मीर अनीश, मीर की बात है तो ये सभी अंतरराष्ट्रीय जगत के है. इन्हें यूरोप में भी लोग पढ़ते हैं. यूरोपीय और अमेरिकी राल्फ रसल, डेविड मैथ्यूज, यह उर्दू के अच्छे स्कॉलर थे. उन्होंने अंग्रेजी में उर्दू साहित्य पर थ्री मुगल पोयटस जैसी किताबें लिखी. रूस में उर्दू ग्रामर पर किताबें लिखी गई है. साहित्य बराबर होता है. कोई छोटा बड़ा नहीं होता है. उर्दू को राजभाषा सरकार ने बनाया है. इसे बनाने के पीछे मकसद था कि उर्दू को भारत में सुरक्षित किया जाए, इसकी पढ़ाई लिखाई में कोई रुकावट न आए, इसलिए सरकार ने मान्यता दी है. सरकार की मान्यता से चीजें मजबूत हो जाती हैं. राजभाषा की अपनी एक वैल्यू है. उन्होंने कहा कि उर्दू जुबान कितने बोलते हैं, इसे जनगणना से देखा जा सकता है. साहित्य में उर्दू का योगदान किसी अन्य सहित्य से कम नहीं है.
'उर्दू एक भारतीय भाषा है'
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर मिर्जा खलील अहमद बेग ने कहा कि उर्दू एक भारतीय भाषा है. भारतीय संविधान में कुल 22 भाषाओं को जगह मिली है. इसमें उर्दू भी शामिल है. नार्दन इंडिया में उर्दू स्पीकर बहुत हैं. उर्दू और हिंदी, दोनों भाषाओं का जन्म खड़ी बोली से हुआ है. उर्दू को बढ़ावा देने से समाज में अच्छा प्रभाव पड़ेगा. उर्दू को राजभाषा देने के पीछे का मकसद इसे बढ़ावा देना ही है. हिंदी-उर्दू दोनों भाषाएं एक दूसरे की विरोधी नहीं है. जाहिर है कि हिंदी बोलने वाले बहुत हैं, लेकिन दूसरी भाषाओं का भी अपना महत्व है. बिहार में उर्दू दूसरी भाषा है. कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बंगाल जैसे तमाम प्रदेश में उर्दू बोलने वाले बहुत हैं. यहां पर शायरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उसकी गणना कर पाना मुश्किल है. उर्दू को बढ़ाने में हिन्दू, मुस्लिम दोनों का ही बहुत योगदान रहा है.
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