Republic Day Poetry हर शख्स किसी ने किसी मुल्क में रहता है. वह अपने वतन से बेइंतहा मोहब्बत करता है. इसकी वजह यह है वतन उसे जरूरत की हर जीत देता है. वतन हमें जमीन, घर, शहरियत देता है. कुछ शायरों ने वतनपरस्ती के जज्बे को शेर में ढाल कर पेश किया है. उम्मीद करते हैं कि इन्हें पढ़ कर आपके दिल में वतन परस्ती का जज्बा जोर मारेगा. पेढ़ें बतनपरस्ती पर बेहतरीन शेर.


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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है 
बिस्मिल अज़ीमाबादी


हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी 
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते 
खुर्शीद अकबर


हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ 
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही 
साहिर लुधियानवी


कहाँ हैं आज वो शम-ए-वतन के परवाने 
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने 
सिराज लखनवी


दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त 
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी 
लाल चन्द फ़लक


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दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो 
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो 
जाफ़र मलीहाबादी


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा 
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा 
अल्लामा इक़बाल


वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है 
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में 
चकबस्त ब्रिज नारायण


लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है 
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी 
फ़िराक़ गोरखपुरी


ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं 
कि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे 
अहमक़ फफूँदवी


इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान 
अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान 
जावेद अख़्तर


वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे 
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे 
जाफ़र मलीहाबादी


ज़माने की हवा बदली उधर रंग-ए-चमन बदला 
गुलों ने जब रविश बदली अनादिल ने वतन बदला 
सय्यद तसलीम हैदर क़मर


हम भारत के रखवाले हैं 
सब इस के बच्चे बाले हैं 
नाज़िश प्रतापगढ़ी


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