मुमताज़ खान: भारतीय की आज़ादी की तहरीक की एक बड़ी कड़ी चौरी-चौरा सानेहा के आज 100 साल हो गए हैं. इस मौक़े पर यूपी हुकूमत सालभर कई प्रोग्राम और तक़रीब चलाने वाली है. आइए जानते हैं क्या था चौरी चौरा सानेहा, जिसने अंग्रेजों की हुकूमत को हिला कर रख दिया था. 


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जलियांवाला बाग क़त्ले-आम के बाद बाबा-ए-क़ौम महात्मा गांधी जी ने सितम्‍बर 1920 से मुल्कभर में असहयोग आंदोलन शुरू किया. इसने भारतीय आजादी की लड़ाई को नई बेदारी दी. जब भी गांधीजी की इस तहरीक की बात चलती है, तब चौरी-चौरा कांड की याद भी इसके साथ जुड़ जाती है. दरअसल जब पूरे मुल्क में असहयोग आंदोलन उरूज छू रहा था, मुल्कभर के लोगों के असहयोग के सबब अंग्रेज सरकार के पसीने छूटने लगे थे. तब एक ऐसा वाक्या हुआ, जिससे महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया. हालांकि बहुत से कांग्रेसी लीडर इस वजह से उनसे नाराज भी हुए. ये चौरी-चौरा कांड ही था, जिसमें 4 फरवरी 1922 के दिन कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी.


तारीख़ के पन्नों में दर्ज है कि 4 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा से मुतस्सिल भोपा बाजार में सत्याग्रही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकाल रहे थे. चौरी चौरा थाने के सामने उस वक्त के थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने उन्हें रोका तो झड़प हो गई. एक पुलिस अहलकार ने किसी सत्याग्रही की टोपी पर बूट रख दिया जिसके बाद भीड़ बेकाबू हो गई. पुलिस की फायरिंग में 11 सत्याग्रही शहीद हो गए और कई ज़ख्मी भी हुए. इससे सत्याग्रही भड़क उठे और उन्होंने चौरी चौरा थाना फूंक दिया. इसमें 23 पुलिसवाले जिंदा जल गए. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने सैकड़ों सत्यग्रहियों पर मुक़दमे चलाए, 19 सत्याग्रही फांसी पर चढ़ा दिए गए. 


वाक्ये से बेचैन महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. इस वाक्ये में तीन शहरियों की भी मौत हो गई थी. ये कांड इस खबर के साथ शुरू हुआ कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कारकुनान को मारा है, इसके बाद लोगों की नाराजगी बढ़ने लगी. गुस्साई भीड़ ने पुलिस स्टेशन को घेरना शुरू किया. देखते ही देखते काफी भीड़ वहां इकट्ठी हो गई. इस भीड़ ने पुलिसवालों से थाने से निकलने को कहा. वहीं पुलिस अहलकार लगातार बढ़ती भीड़ को देखकर अंदर थाने में छिप गए. उसे बाहर से बंद कर लिया. 


नतीजतन थाने को आग लगा दी गई. इसमें पुलिस थाने में मौजूद 23 पुलिस अहलककार जल गए. ये ऐसा वाक्या था, जो बहुत तेजी से साथ मुल्कभर में फैला. ब्रिटिश सरकार के हुक्मरानों के हाथ-पांव फूल गए. यहां तक की गोरखपुर में मौजूद इंतज़ामिया के लोग डर गए कि अब उनका क्या हाल होगा लेकिन जैसे ही इस तशद्दुद की खबर महात्मा गांधी के पास पहुंची, उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था. गांधीजी के इस फैसले को लेकर इंक़लाबियों का एक गुट और कांग्रेस के कई आला लीडरान उनसे खासे नाराज हुए. 


16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने आर्टीकल 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसे वाक्यात होते. हालांकि गांधीजी ने इस वाक्ये के लिए पुलिस वालों को ही कसूरवार बताया. जिन्होंने ऐसी उकसाने वाली कार्रवाई की, जिससे लोगों में नाराजगी फैली और ऐसा माहौल तैयार हुआ. हालांकि उन्होंने इस मामले में जिम्मेदार लोगों से अपील भी की कि वो खुद को पुलिस के हवाले कर दें. क्योंकि उन्होंने जुर्म किया है.


इधर तहरीक वापस लेने के चलते अंग्रेज सरकार ने जहां राहत की सांस ली वहीं आजादी की लड़ाई को बडा़ झटका लगा. क्योंकि बहुत कामयाब हुआ था गांधी जी का असहयोग आंदोलन. असहयोग आंदोलन में सभी चीज़ों-इदारों और निज़ाम का बॉयकॉट करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर हुकूमत कर रहे थे. उन्होंने ग़ैरमुल्की चीज़ों, अंग्रेज़ी क़ानून, तालीम वग़ैरह के बॉयकॉट की बात कही. खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था. लोगों ने स्कूल, कॉलेज जाना छोड़ दिया. नौकरियां छोड़ दी थीं. बड़े पैमाने पर हर जगह ग़ैरमुल्की सामानों की होली जलाई जाने लगी थी. 


लिहाज़ा चौरी-चौरा कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो अंग्रेज़ों के लिए जश्न का मुक़ाम था. इसके बाद अंग्रेजों ने गांधीजी पर ही मुल्क से ग़द्दारी का मुकदमा चलाया. मार्च 1922 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. असहयोग आंदोलन की तजवीज़ कांग्रेस के कलकत्ता सेशन में 4 सितंबर 1920 को पास हुआ था. गांधी जी का मानना था कि अगर असहयोग के उसूलों की सही से पासदारी की गई तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.


चौरी-चौरा कांड की याद में 1973 में गोरखपुर में इस जगह पर 12.2 मीटर ऊंची एक मीनार बनाई गई. इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था. बाद में भारतीय रेलवे ने दो ट्रेनें भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाईं. इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस था. जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन का भी कायम किया गया. आज उसी चौरी चौरा सानेहा के 100 साल पूरे हो गए हैं. इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार सालभर चौरी-चौरा सदसाला तक़रीब के नाम से कई प्रोग्राम करने वाली है.


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