नई दिल्लीः विशिष्ट पहचान परियोजना यानी आधार कार्ड के अध्यक्ष नंदन नीलकेणि ने इसके शुरुआती दिनों के एक वाक्ये का जिक्र किया है. नंदन नीलकेणि ने कहा है कि एक बार हवाईअड्डे के बाहर एक टैक्सी चालक ने उनसे अजीबोगरीब अर्जी की थी. राह चलते हुए एक टैक्सी चालक ने उनसे कहा था कि उसके एक साथी टैक्सी चालक का आधार कार्ड जारी न करें, क्योंकि वह लापरवाही से वाहन चलाता है. नीलकेणि अपनी पत्नी रोहिणी के साथ हवाईअड्डे पर पैदल मार्ग को पार कर रहे थे, तभी एक कार उनके पास से गुजरी, जो लगभग उन्हें टक्कर मारने ही वाली थी, जिससे बचने के लिए उन दोनों को वापस फुटपाथ पर चढ़ना पड़ा था. 
वे इस हादसे से उबर रहे थे तभी पास ही खड़ा एक टैक्सी चालक चिल्लाया, ‘‘सर आप उसको आधार कार्ड मत देना.’’ इस मनोरंजक घटना का जिक्र रोहिणी की नई किताब ‘‘समाज, सरकार, बाजार : ए सिटिजन-फर्स्ट अप्रोच’’ में किया गया है. यह किताब चार अगस्त को जारी होगी. इस  किताब में उन्होंने समाज, राज्य और बाजारों के तीन क्षेत्रों के बीच एक गतिशील संतुलन की जरूरत पर जोर दिया है, और तीन दशक से ज्यादा वक्त के अपने नागरिक जुड़ाव और परमार्थ के कार्यों से मिली सीख का जिक्र किया है.

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हम सबसे पहले समाज के सदस्य हैं
रोहिणी लिखा है कि अगर हम यह भूल जाते हैं कि हम सबसे पहले समाज के सदस्य हैं, और इसके बजाय खुद को राज्य के लाभार्थी के तौर पर या बेहतर भौतिक जीवन की तलाश में बाजार के उपभोक्ता के रूप में खुद को देखते हैं, तो हम ‘समाज’ की मूलभूत सर्वोच्चता को खतरे में डाल देते हैं. यह अनिवार्य रूप से वक्त के साथ नागरिक और समुदाय के तौर पर हमारे अपने हितों को खतरे में डाल दगे.’’ रोहिणी कहती हैं कि उनकी किताब इन तीन क्षेत्रों की बदलती भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण सार्वजनिक विमर्श में शामिल होने के लिए विचारकों, शोधकर्ताओं, लेखकों, नागरिकों और नेताओं को एक निमंत्रण है.


किनके लिए उपयोगी है ये किताब 
रोहिणी इस बात की वकालत करती हैं कि एक अच्छे समाज की तलाश ‘समाज’ को आधारभूत क्षेत्र के तौर पर स्थापित करने के साथ शुरू होती है, ताकि राज्य और बाजारों को व्यापक जनहित के लिए जिम्मेदार बनाया जा सके. वह किताब में लिखती हैं, ‘‘मौजूदा  भारत की कठिन सामाजिक समस्याओं को देखते हुए, तीनों क्षेत्रों को मिलकर और आपसी सम्मान के साथ काम करने की जरूरत है.’’ रोहिणी के मुताबिक, उन्होंने इस किताब को एक विद्वान के रूप में नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर लिखा है. किताब में वह नागरिकों की जिम्मेदारियों पर अपने शुरुआती काम से लेकर, मुल्क की न्यायिक व्यवस्था के अंदर के मुद्दों और डिजिटल युग की क्षमता और स्थिरता की चुनौतियों के साथ-साथ कोविड-19 महामारी से मिली सीख, राज्य, समाज और बाजार के बीच जटिल संतुलन और संबंधों पर चर्चा करती हैं.


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