नई दिल्ली: नवाब मिर्जा खान दाग दहेलवी 25 मई 1831 को दिल्ली में पैदा हुए. दाग़ का असल नाम इब्राहीम था लेकिन वो नवाब मिर्ज़ा ख़ान के नाम से जाने गए. उन्होंने अपना तखल्लुस दाग देहलवी रखा. दाग का मतलब धब्बा और देहलवी का मतलब दिल्ली का रहने वाला. दाग ने अपने वक्त की बेहतरीन तालीम पाई. क़िले के रंगीन और अदबी माहौल में दाग़ को शायरी का शौक़ पैदा हुआ. दाग और उन्होंने ज़ौक़ की शागिर्दी इख़्तियार कर ली. उन्होंने कम से कम फारसी लफ्जों का इस्तेमाल करके उर्दू शेर लिखे. कुछ आलोचकों ने दाग को अपने वक्त का सबसे बेहतरीन रोमांटिक शायर करार दिया. दाग़ वो शायर हैं जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल को उसकी निराशा से निकाल कर मुहब्बत के रास्ते पर ला दिया. 17 मार्च 1905 को तेलंगाना के हैदराबाद में दाग देहलवी ने वफात पाई.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा 


सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं 
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं 


ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा 
मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं 


जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक 
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें 


आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले 
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले 


दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे 
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे 


वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे 
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था 


मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है 
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है 


तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता 
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता 


ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं 
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं 


Zee Salaam Live TV: