World Kindness Day: निजी जिंदगी में कितने दयालु हैं आप; आइये झांकते हैं खुद के गिरेहबान में
World Kindness Day 2024: आज world kindness day है. इसे पहली बार 1998 में शुरू किया गया था. यह दैनिक जीवन में इंसानों में दयालुता के भाव को निखारने की सीख देता है. यह एक मानवीय गुण है जो, जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वैचारिक विभाजन को पाटती है. इसका मकसद इस दुनिया को इंसानों के रहने के लिए और बेहतर जगह बनाना है. आइये हम इस बात की पड़ताल करते हैं कि हम अपने निजी ज़िन्दगी में कितने दयालु हैं?
Opinion
मैंने न तो कभी कबूतर को दाना दिया और न किसी लावारिस गाय को रोटी खिलाई है
मैंने कभी कबूतर को दाना नहीं खिलाया है, न ही गर्मियों में कभी अपनी छत पर चिड़ियों के लिए दाना या पानी का बरतन रखा है।
मैंने कभी सड़क पर खड़ी लावारिस गायों या कुत्तों को भी रोटी नहीं खिलाई है।
मैं बात-बात पर अल्लाह-रसूल की बात भी नहीं करता हूं। हर मामले में हदीस और शरीयत भी नहीं घुसेड़ता हूं।
हाँ, 15-20 साल पहले तक जब जहां लगा कि कोई गलती भी कर रहा है, और सीनाजोड़ी भी कर रहा है, बस वहीं पकड़कर कूट दिया। जल्दबाजी और जोश में कई लोगों को कूटने का आज भी मलाल है। कुछ घटनाओं को याद कर आज भी आत्मग्लानि से भर जाता हूं।
मुझे लगता है, मैं अच्छा आदमी नहीं हूं। मैं धार्मिक आदमी नहीं हूं। मुझे एक बढ़िया सामाजिक प्राणी और धार्मिक इंसान बनना चाहिए।
दुनिया के सभी धर्म भी तो यही चाहते हैं, कि आदमी अच्छा बने.. हर धर्म का पहला लक्ष्य है, आदमी को आदमी बनाना। उसे आदमी बने रहने के लिए प्रेरित करना। प्रलय, कयामत, और परलोक आदि का भय दिखाकर आदमी के अंदर आत्मनियंत्रण पैदा करना। आदमी के अंदर प्रेम, दया, करुणा, ईमानदारी, नैतिकता और सत्यनिष्ठा आदि के गुणों का विकास करना ही धर्म का अंतिम उद्देश्य है, ताकि आदमी से आदमी महफूज रह सके। उसे एक दूसरे से कोई खतरा महसूस न हो जैसे.. इंसानों को किसी हिंसक जंगली जानवर से खतरा होता है!
लेकिन कभी- कभी मुझे लगता है कि धर्म अपने इस प्रयोजन में बुरी तरह विफल साबित हो रहा है। दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक या आस्तिक लोगों की संख्या है, फिर भी उनमें नैतिकता, सत्यनिष्ठता और सच्चरित्रता का अभाव है। रोटी के लिए होने वाले किसी युद्ध को छोड़ दें, तो दुनिया के सारे गुनाहों के पीछे इंसानों की नैतिकता का ह्रास है।
मैंने, धार्मिक लोगों से ज्यादा नास्तिक लोगों को नैतिकता, सत्य और न्याय का पैरोकार पाया है। सार्वजनिक तौर पर जो जितना धार्मिक और नैतिक होने का दिखावा करता है, एकान्त और निजी जीवन में वो उतना ही भ्रष्ट और पतित होता है।
पिछले 8 सालों से मैं नोएडा के मायावती पार्क के उस रास्ते से गुजरता हूं, जो लावारिस कबूतरों का ठिकाना है। लोग यहां रुककर वहीं पर दाना बेच रहे आदमी से दाना खरीदकर उन कबूतरों के आगे डाल देते हैं।
कई बार लोग महंगी गाड़ियों से उतरकर इन कबूतरों को दाना डालते हैं। दिल्ली में भी ऐसे कई पॉइंट्स हैं, जहां सुबह- सुबह लोग इन कबूतरों को दाना डालते हैं।
उन रास्तों से गुजरते हुए, मैं अक्सर ये सोचता हूँ। ये कितने अच्छे लोग होते होंगे। जो उन अनजान कबूतरों को अपनी गाड़ी से उतरकर दाना डालते हैं। इन कबूतरों से इनका कोई रिश्ता नहीं है। कोई पूर्व पहचान नहीं होती है.. ये इनके पड़ोसी भी नहीं होते होंगे.. इंसानों और कबूतरों की इस भीड़ में न कबूतर किसी दाना डालने वाले को पहचानता होगा न दाना डालने वाला कोई इंसान इन कबूतरों को पहचान पाता होगा। हो सकता है, इस जिंदगी में दोबारा दाना डालने वाले किसी शख्स का इधर से गुजरना भी न हो। जब कभी इस या उस रास्ते से गुजरने का इत्तेफाक भी हो तो शायद पहले वाला कबूतर ही न रहे।
आखिर इंसानों की तरह कबूतरों की जिंदगी का भी तो कोई ठिकाना नहीं रहता होगा। फिर भी इंसान उन कबूतरों को दाना डालता है। शायद ये इंसानों की दयालुता, सहृदयता, मेहराबी, हमदर्दी और kindness की पराकाष्ठा है। धरती पर पाए जाने वाला सबसे बुद्धिमान प्राणी बिना किसी लोभ- लालच के इन बेजुबान परिंदों का ख्याल रखता है! उन्हें दाना और पानी डाल देता है!
लेकिन एक और सवाल अक्सर मुझे बेचैन कर देता है। कबूतरों को दाना डालते इंसानों को देखने के बाद ऑफिस के लिए बचे पूरे रास्ते मैं सोचता हूं। क्या इन कबूतरों को दाना डालने वाले लोग अपनी निजी और सार्वजनिक जीवन में भी इतने ही मेहरबान और दयालु होते होंगे ?
क्या ये अपने घरों में भी अपने परिवार के सदस्यों से इतने हुस्न सुलूक से पेश आते होंगे ?
क्या ये अपने बूढ़े बाप या बूढ़ी मां के प्रति भी इतने ही दयालु होंगे ?
क्या ये अपनी पत्नी या उनके रिश्तेदारों के प्रति भी इतना बड़ा दिल दिखाते होंगे ?
कबूतरों को दाना खिलाने के बाद क्या वो आदमी घर जाकर अपनी पत्नी के घरेलू कामों में भी हाथ बंटाता होगा ? कभी खुद से किचन या बाथरूम साफ करता होगा ? अपने कपड़े खुद से धोता होगा और उसपर स्त्री करता होगा ? क्या वो अपनी पत्नी, माँ और बहन के कपड़ों पर भी कभी कभी स्त्री कर देता होगा ? उनके लिए खाना बनाता होगा ? खाना परोसता होगा?
क्या वो आदमी अपने भाई -बहनों, और बाल बच्चों से भी इतनी हमदर्दी रखता होगा ? क्या ऐसे लोग आर्थिक रूप से कमजोर या हैसियत में अपने से कमजोर रिश्तेदारों या दोस्तों के प्रति भी इतना नरम रुख अख्तियार करता होगा ?
क्या कबूतरों को दाना डालने वाले लोग अपने घरेलू नौकरों या सहायकों को भी कबूतरों जितना प्यार देते होंगे? क्या ये अपनी कार के ड्राइवरों के प्रति भी कबूतरों जितना ही सम्मान और हमदर्दी दिखाते होंगे?
क्या अपनी फैक्ट्री या दफ्तर में काम करने वाले अपने स्टाफ के प्रति भी इतने दयावान होते होंगे ?
क्या उन्हें समय पर वेतन, बोनस, छुट्टी या अन्य लाभ देते होंगे ? क्या किसी इमरजेंसी में उन्हें एडवांस में पैसे दे देते होंगे ? क्या किसी स्टाफ के मर जाने पर उसके बीवी बच्चों की फिक्र करते होंगे ?
क्या कबूतरों को दाना डालने वाला कोई बॉस अपने कर्मचारियों की पीड़ा भी समझता होगा ? उसे अपने जैसा इंसान मानता होगा?
वक्त पर उसके वेतन वृद्धि, प्रमोशन, बोनस, काम के घंटे, वर्क लोड, और उनकी छुट्टियों का ख्याल रखता होगा ? क्या उनकी छोटी-मोटी गलतियों को नज़रअंदाज कर देता होगा?
क्या छंटनी में कोई बॉस अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालकर व्यथित होता होगा ?
क्या कबूतरों को दाना देने वाला आदमी आसमान में उड़ती हुई किसी चिड़िया द्वारा अपने कपड़े पर हग देने पर संयम रख पाता होगा ?
रास्ते में किसी कार या बाइक सवार से अपने वाहन में हल्की टक्कर या खरोच को बर्दाश्त कर पाता होगा ? क्या किसी के कड़ा बोल देने, अपमान कर देने या गारिया देने पर उसे माफ कर देता होगा ?
कबूतरों को मुफ्त में दाना देने वाला आदमी क्या किसी गरीब सब्जी वाले से सब्जी खरीदते वक्त मोल- भाव नहीं करता होगा ? कभी ऑटो से चलने पर चालक से वास्तविक किराया से भी कम किराया लेने का दुराग्रह नहीं करता होगा ?
क्या कबूतरों को दाना डालने के लिए रुकने वाले बड़ी गाड़ियों वाले लोग सड़क पर पैदल चल रहे किसी इंसान को लिफ्ट देते होंगे ? आधी रात को सुनसान सड़क पर फंसे किसी राहगीर के लिए अपना दिल बड़ा करते होंगे ? सड़क दुर्घटना में घायल किसी आदमी की मदद करते होंगे ? उसे अपनी गाड़ी में अस्पताल पहुंचाते होंगे ?
ट्रैफिक सिग्नलों पर कलम या जूड़े में लगाने वाले फूलों के गजरे बेच रही गरीब लड़कियां या औरतों के आग्रह पर अपनी कार के शीशे डाउन करते होंगे ? दिल्ली के conought पैलेस या नॉएडा के अट्टा मार्किट में गुलाब के फूल बेच रही गरीब लड़कियों से बिना ज़रुरत के कभी फूल खरीदते होंगे?
क्या कबूतरों को दाना देने वाले लोग कभी किसी ज़रूरतमंद को पैसे उधार देते होंगे ? क्या वो उधार लेने के बाद उस व्यक्ति को क़र्ज़ लौटाने में मोहलत देते होंगे?
क्या कबूतरों को दाना देने वाले लोग ट्रैफिक में फंसी और ख़राब हो गयी किसी कार सवार की मदद करते होंगे ? रात में किसी बाइक का पेट्रोल खत्म होने के बाद उसे खींचकर ले जाते बाइकर से पूछकर उसकी मदद करते होंगे ?
अक्सर मैं एक बात सोचकर गर्व से भर जाता हूं। मैं कितने महान देश का वासी हूं। कितने धर्म और संस्कृतियों की जननी है ये धरती। जहां नदी, पहाड़, पेड़ - पौधे और जानवर भी पूजे जाते हैं। उनमें देवताओं का वास माना जाता है। जहां सांपों को दूध और गायों को रोटी खिलाई जाती है। गायों को माता माना जाता है। जहाँ 30 दिन काले कुत्ते को पेड़ा खिलाने से इंसानों की बिगड़ी किस्मत सुधर जाती हो.. कितने दयालु हैं हमारे देश के लोग?
आज world kindness day पर दुनिया हमसे बहुत कुछ सीख सकती है। आखिर इसलिए तो मनाया जाता है वर्ल्ड काइंडनेस डे ताकि इस दुनिया में प्रेम, करुणा और दया का माहौल बनाकर इसे इंसानों के रहने के लिए एक बेहतरीन जगह बनाई जा सके।
फिर भी इतना कुछ होने, देखने और महसूस करने के बाद ... एक सवाल अक्सर मेरा पीछा करता है। मुझे बेचैन करता है..
जिस देश में जहरीले सांप पूजे जाते हों.. कुत्ते को रोटी खिलाई जाती हो.. उल्लू और नीलकंठ पक्षी को देखकर इंसानों का दिन बन जाता हो.. गाय पूजी जाती हो, उसे माता माना जाता हो.. उसी देश में गाय के नाम पर इंसान आखिर कैसे मार दिए जाते हैं? उसी देश में अपने ही जैसे किसी दूसरे इन्सान से लोग हद दर्जे की नफरत कैसे कर लेते हैं ? क्या हमारी kindness का यही पैमाना है ?
: हुसैन ताबिश
नोट: लेखक जी सलाम से जुड़े हैं. यह उनका निजी विचार है.