Muharram 2023: मुहर्रम में क्यों बनाया जाता है ताजिया?
Muharram 2023: मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम. मजलिस अज़ादारी और पुरसादारी के साथ साथ अक़ीदतमंद अपने घरों, इमामबाड़ों और अज़ाख़ानों में ताज़िया रखते हैं. मोहर्रम का चांद नज़र आते ही अज़ाख़ाने आरास्ता हो जाते हैं. इन अज़ाख़ानों में ताज़िए भी रखे जाते हैं. कुछ लोग नवीं मोहर्रम की रात में भी ताज़िया रखते है. कुछ लोग चांद रात से ही अपनें घरों को ताज़ियों से आरास्ता करते हैं. दसवीं मोहर्रम को अपने इलाक़े की कर्बला में दफ़्न करते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि ताज़ियादारी सिर्फ़ हिंदुस्तान में ही है. ईरान और इराक़ में शिया सबसे ज़्यादा हैं और बड़े ही एहतेमाम व इंतेज़ाम के साथ अज़ादारी होती लेकिन मरासिमे अज़ा में ताज़िया नज़र नहीं आता. सदियों से अज़ादारों को बुज़ुर्गों से विरासत में मिली ताज़ियादारी की तारीख़ बहुत पुरानी है. कुछ लोग हज़रत इमाम हुसैन के रौज़ों की शबीह यानी नक्ल बनाना हिंदुस्तानी कल्चर का हिस्सा मानते हैं. तो कुछ लोगों का मानना है कि 14वीं सदी में बादशाह रहा तैमूर लंग इमाम हुसैन से बेहद अक़ीदत रखता था. मोहर्रम में हर साल कर्बला जाता था. एक साल तबीयत ख़राब होने के सबब वो इराक़ के शहर कर्बला नहीं जा सका. तो उसने इमाम हुसैन के रौज़े की तरह एक छोटा रौज़ा बनावाय जिसे ताज़िया कहा गया. तब से ताज़िया हिंदुस्तान में अज़ादारी मनाने वालों की अक़ीदत में शामिल हो गया और यहीं से ताज़ियादारी की शुरुआत हुयी. हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती जब हिंदुस्तान आए तो उन्होंने भी अजमेर में एक इमामबाड़ा बनवाया और ताज़िया रखा. आज भी आपकी दरगाह पर ताज़िया रखा जाता है. ताज़ियादारी सिर्फ़ शिया मुसलमान ही नहीं करते बल्कि सुन्नी मुसलमानों के अलावा हिंदू हज़रात भी ताज़िया रखते हैं. इन अक़ीदतमंदों का मानना है कि ताज़ियों से उनकी मन्नतें और मुरादें पूरी होती हैं. हिंदुस्तान में ताजिया का एक बड़ा कारोबार है. कई शहर हैं जहां लोगों की रोजी रोटी ताजियों से जुड़ी हुई है. यूपी के लखनऊ और आसपास के ज़िलों में ताज़िया और इमामे हुसैन के रौज़ों की शबीह "ज़री" भी बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है.