एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि चिंपैंजियों को जब चोट लग जाती है तो वह अपने डॉक्टर खुद बन जाते हैं. अपने शरीर पर लगी चोट को ठीक करने के लिए वह ढूंढ कर जड़ी बूटियां खाते हैं.
शोध में खुलासाधकर्ताओं का कहना है कि यह पता लगाना मुश्किल है कि चिंपैंजी बीमारियों को ठीक करने के लिए जानबूझकर जड़ी बूटी ढूंढते हैं या फिर 'अनजाने' में ही उन पौधों को खाते हैं जो औषधीय होते हैं.
यह अध्ययन PLOS ओएनई पत्रिका में प्रकाशित किया गया है. युगांडा के 'बुडोंगो सेंट्रल फॉरेस्ट रिजर्व' में ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने 51 जंगली चिम्पैंजियों के व्यवहार और स्वास्थ्य का अध्ययन किया.
रिसर्चर ने पाया कि एक नर चिम्पैंजी के हाथ में चोट लगी हुई थी और वह फर्न की पत्तियों को ढूंढ़कर खा रहा था, जिससे दर्द और सूजन को कम करने में मदद मिली होगी.
इसी तरह एक दूसरे चिम्पैंजी परजीवी संक्रमण से ग्रस्त था और वह इसे ठीक करने के लिए 'स्कूटिया मायर्टिना' की छाल खा रहा था. यह एक जड़ी बूटी है.
रिसर्चरों ने वन में पेड़ और जड़ी-बूटियों की प्रजातियों के पौधों का भी विश्लेषण किया और यह पाया कि इन पौधों में सूजन को कम करने और एंटीबायोटिक गुण हैं.
चिम्पैंजी खुद औषधि के तौर पर इनका सेवन करते थे. इन प्रजातियों में वे पौधे शामिल हैं जो चिम्पैंजी के आहार का हिस्सा नहीं थे, लेकिन इनमें उपचारात्मक गुण होने के कारण वे इन्हें खाते थे.
शोधकर्ताओं ने पाया कि 88 प्रतिशत पौधों के अर्क में जीवाणुरोधी गुण थे जो बैक्टीरिया को फैलने से रोकते थे जबकि, 33 प्रतिशत पौधों में सूजन को कम करने के गुण थे.