Justin Trudeau Alone: लोगों की नजरों में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो काफी हद तक अकेले पड़ गए हैं, अपनी आबादी से 35 गुना आबादी वाले देश से पंगा लेने के बाद. कनाडा की मीडिया में ये बात कही गई है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रूडो की भयानक ऐलान के कुछ दिनों बाद, फ़ाइव आइज़ ख़ुफ़िया गठबंधन में उनके सहयोगियों ने साफ तौर से सार्वजनिक बयान दिए, जो पूरी तरह सपोर्ट से काफी कम थे.


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ऑस्ट्रेलिया ने जताई हैरानी


ब्रिटेन के विदेश सचिव जेम्स क्लेवरली ने कहा था कि उनका देश "कनाडा जो कह रहा है उसे बहुत गंभीरता से लेता है." लगभग समान भाषा का इस्तेमाल करते हुए, ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि वह इल्जामों से "काफी परेशान" हैं. लेकिन शायद सबसे ज्यादा चौंकाने वाली चुप्पी कनाडा के दक्षिणी पड़ोसी, अमेरिका से आई. दोनों देश अच्छे साथी हैं, लेकिन अमेरिका ने कनाडा की तरफ से नाराजगी जाहिर नहीं की.


भारत के साथ अमेरिका


जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस हफ्ते संयुक्त राष्ट्र में पब्लिकली भारत का मुद्दा उठाया, तो यह निंदा करने के लिए नहीं, बल्कि एक नया आर्थिक रास्ता बनाने में मदद करने के लिए भारत की तारीफ के लिए था. बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने बाद में इस बात से इनकार किया कि अमेरिका और उसके पड़ोसी के बीच कोई 'दरार' है. उन्होंने कहा कि कनाडा से मशवरा किया जा रहा है. 


पश्चिम के लिए भारत अहम


लेकिन बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य पब्लिक बयान कुछ ऐसे ही थे, जैसे "गहरी चिंता". ये इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि पश्चिमी दुनिया के लिए भारत की कितनी अहमियत है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारों का कहना है कि कनाडा के लिए दिक्कत यह है कि उसके फायदे मौजूदा वक्त में भारत के व्यापक रणनीतिक महत्व की तुलना में बहुत कम हैं. विल्सन सेंटर के कनाडा इंस्टीट्यूट के एक रिसर्चर जेवियर डेलगाडो ने बीबीसी को बताया, "अमेरिका, ब्रिटेन और इन सभी पश्चिमी और इंडो-पैसिफिक साथियों ने एक ऐसी पॉलिसी बनाई है जो खास कर भारत पर केंद्रित है, ताकि चीन के खिलाफ एक सुरक्षा कवच और जवाबी कार्रवाई की जा सके. यह कुछ ऐसा है जिसे वे हटाने का जोखिम नहीं उठा सकते."