इस्लामाबादः आर्थिक मंदी और नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने ऐलान किया है कि वह आने वाले दिनों में मुल्क में ब्याज-मुक्त इस्लामिक बैंकिंग निजाम (Interest free banking system) कायम करेगा. सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ दायर याचिका वापस ले ली है. वित्तमंत्री इशाक डार ने बुधवार को इस बात का ऐलान किया था. शमा टीवी के मुताबिक, उन्होंने कहा, “क्योंकि इसका पवित्र कुरान में जिक्र है और मेरा भी मानना है कि हमारे फैसलों का बैरोमीटर कुरान और सुन्नत है, हम सभी को इसका पालन करना चाहिए." मंत्री इसहाक डार ने कहा कि देश इस्लामिक कानून के तहत 2027 तक ब्याज मुक्त बैंक प्रणाली (Interest free banking system) की तरफ मुल्क बढ़ सकता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

यह भी पढ़ें: सद्दाम हुसैन के खून से लिखा गया 605 पन्नों का कुरान


सुप्रीम कोर्ट ने दिया है फैसला
पाकितान के संघीय शरीया अदालत के मुताबिक, पाकिस्तान में मौजूदा ब्याज वाली बैंक व्यवस्था शरीया कानून के खिलाफ है. शरीया अदालत ने यह फैसला 20 साल से लंबित एक मामले में सुनाया है. 

मौलवियों ने फैसले का स्वागत किया
पाकिस्तान के मौलवियों ने रकार के फैसले का खैर मकदम किया है. इंटरफेथ सद्भाव और मध्य पूर्व के लिए प्रधान मंत्री के विशेष प्रतिनिधि हाफिज मुहम्मद ताहिर महमूद अशरफी ने मुल्क में ब्याज-आधारित बैंकिंग निजाम को खत्म करने की दिशा में इस तरह के साहसिक कदम उठाने के लिए प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ और वित्त मंत्री इशाक डार का शुक्रिया अदा किया है. उन्होंने कहा कि रीबा (ब्याज) को खत्म करने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व बढ़ावा मिलेगा और देश आर्थिक विकास और समृद्धि की नई ऊंचाइयों पर पहुंचेगा.
इस बीच, जमीयत अहले हदीस के प्रमुख साजिद मीर ने कहा कि सरकार का यह कदम बेहद काबिल-ए-तारीफ है. इस्लामिक विद्वान ने कहा, “सरकार को आखिरकार अपनी गलती का एहसास हो गया है. सरकार को अब मॉडल इस्लामिक बैंक स्थापित करना चाहिए." 


यह भी पढ़ें: सजा तय होने के बाद आफताब को हमारे हवाले कर दो, हम इस तरह देंगे उसको मौत: मौलाना तौकीर रजा


क्या होता है ब्याज मुक्त बैंकिंग सिस्टम
ब्याज मुक्त बैंकिंग सिस्टम इस्लामी मूल्यों और शरिया कानून पर आधारित एक बैंकिंग प्रणाली है, जिसमें ग्राहकों के फिक्स डिपोजिट पर किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जाता है और इन बैंकों से लोन लेने पर ग्राहकों से भी कोई ब्याज नहीं लिया जाता है. यह जमाकर्ता या कर्ज लेने वाले दोनों को फायदे और नुकसान में बराबर का साझीदार बनाता है, लेकिन पहले से कोई फिक्स रकम बयाज के तौर पर देने का करार नहीं करता है. इस्लामिक बैंक इक्विटी भागीदारी के जरिए मुनाफा कमाते हैं, जिसके लिए उधारकर्ता को ब्याज का देने के बजाय बैंक को अपने मुनाफे में हिस्सा देना पड़ता है. इस बैंकिंग सिस्टम में बैंक के कभी भी दिवालिया होने या डूबने के चांस नहीं होते हैं और देश में इन्फ्लेशन जैसे हालात कभी पैदा नहीं होते हैं. इससे महंगाई पर भी कंट्रोल रहता है. 


यह भी पढ़ें: खुद को जिंदा साबित करने गए शख्स की अफसरों के सामने हुई मौत , जानिए पूरा मामला


इन देशों में लागू है ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रणाली 
मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, जॉर्डन, तुर्की, इजिप्ट और इथोपिया सहित कुछ दीगर इस्लामी मुल्कों में ब्याज मुक्त बैंकिंग व्यवस्था काफी पहले से चल रही है. हालांकि इन देशों में ब्याज वाले कुछ बैंक भी साथ-साथ काम कर रहे हैं. दुनिया भर में लगभग 520 बैंक और 1,700 म्यूचुअल फंड हैं जो इस्लामी सिद्धांतों का पालन करते हैं. उल्लेखनीय है भारत में भी केरला में इस्लामी बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत की गई है. यहां कई ऐसे बैंक हैं, जो बयाज रहित कारोबार करते हैं. इन बैंकों का गठन आरबीआई के नियमों के मुताबिक किया गया है. 


इस्लामिक वित्तीय संपत्ति के 2024 तक लगभग $3.7 ट्रिलियन तक बढ़ने का अनुमान 
इस्लामिक कॉरपोरेशन फॉर द डेवलपमेंट ऑफ़ प्राइवेट सेक्टर (ICD) और Refinitiv की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक , 2012 और 2019 के बीच, इस्लामिक वित्तीय संपत्ति $1.7 ट्रिलियन से बढ़कर $2.8 ट्रिलियन हो गई और 2024 तक लगभग $3.7 ट्रिलियन तक बढ़ने का अनुमान है.  यह इजाफा काफी हद तक मुस्लिम देशों की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की वजह बनी  है (विशेषकर वे जो तेल की कीमतों में वृद्धि से लाभान्वित हुए हैं). 


Zee Salaam Video:



ऐसी ही दिलचस्प खबरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in